Wednesday, 26 February 2014

Might be the last post.


Feeling Very Sad...

But that's not the way to live.

I have stopped writing, as even your feeling of hurt and pain is also being disrespected or insulted.

Every time my feelings override me and come up with few line, I divert my mind.

I don't know, whether I am doing right or wrong, but as of now I have decided to remove my blog in few times or at least remove my poetries. As I wont be writing much, I wont be able to manage it or you say, I dont want really. Want to get myself indulge in my work only which I love and get equally love in return from it, which is being reflected as the amount of satisfaction comes to me.

Thanks Everyone who ever read my blog.

ऐसी जिन्दगानी न रहे।

इन अल्फाजों से अब अपनी यारी न रहे,
अब ये शेऱ-ओ-शायरी की बीमारी न रहे।

खतम सा हो गया हो जब हर अफसाना,
फिर अब ये कुछ बांकी खुमारी न रहे।

जहन में आते खयालों को मोड़ देता हूँ मैं अक्सर
बयाँ जब भी हो तो दर्द, अब ये लाचारी न रहे।

अब हर बात पुरानी साफ साफ दिखने लगी है,
ए दिल अब तो समझ, झूठे ख्वाबों की ये कहानी न रहे।

दफन हर दर्द को कर दिया है, पर अक्सर उभर उठता है
भूलना चाहूं तो दिल कुहर उठता है
चलूं दिमाग को कुछ और काम दूं, बहुत भटक चुका
फकत यादों में रहूं जिन्दा, ऐसी जिन्दगानी न रहे।

 निःशब्द...

Tuesday, 11 February 2014

ऐ दिल मत रो सोच के तू ये

ऐ दिल मत रो
सोच के तू ये
हाथ में उसका हाथ नहीं
जो शामिल है हर धड़कन में
वो कब तेरे साथ नहीं

गुमसुम आँखे सूनी सांसे
टूटतू जुडती उम्मीदें
डरता हूँ यूं कैसे कटेगी
उम्र है कोई रात नहीं

तू मेरी खामोशी सुनके
इतनी भी गमगीन न हो
बस दुनिया में जी नहीं लगता
और तो कोई बात नहीं

ऐ दिल मत रो
सोच के तू ये
हाथ में उसका हाथ नहीं
जो शामिल है हर धड़कन में
वो कब तेरे साथ नहीं

http://youtu.be/ZbL2iCZDNhk

Sunday, 2 February 2014

क्या करूँ - मना है

जिस शहर में इन पन्छियों को चहचहाना मना है ।
उस शहर में इंसान को भी खिलखिलाना मना है ।
 
बता तूँ क्यों कर रहा है हाल ए दिल सबको बयाँ ।
ऐ मेरे दिल चुप भी कर यहाँ कुछ सुनाना मना है ।

बेकार है उड़ने की कोशिश बुलबुलो तुम क़ैद हो ।
बंद पिंजड़ों में अपने परों को फड़फड़ाना मना है ।

आज जब माँगा रहम तब महबूब यह कहने लगा ।
इश्क किया तब सोचते अब आँसू बहाना मना है ।

क्या करूँ कैसे करूँ मैं कैसे बताऊँ हाल ए दिल ।
उसकी गली में बिन इज़ाज़त आना जाना मना है ।

यह आशिक़ों का जमघट खड़ा इन्तज़ारे वक्त में ।
सब अपनी बारी पर चलेंगे अभी तो जाना मना है ।

कुदरती फ़रमान है ये तूँ वक्त ए जिबह तैयार रह ।
दस्तूर ए मक़तल है यही यहाँ तड़फड़ाना मना है ।

दिल के ज़ख्म नासूर अंजुम हो रहे हैं, क्या करूँ ।
मज़बूर हूँ यहाँ हुक्म है कि मरहम लगाना मना है ।

 
-- (अंजुम कानपुरी)
 

दिल को कुछ हौंसला मिले


 ठहर जाये जो ये अश्क़ , तो दिल को कुछ हौंसला मिले ,
जिन्दगी के सफर में , फिर से चलने का फैसला मिले *
...
वफ़ाई - बेवफ़ाई , वादे - ईरादे , बहुत देख लिए हमने ,
गम और खुशी से गुज़र कर , कोई तो नया मसला मिले *

ख्वाबों की दुनिया , मृग - मरिचिका की प्यास - सी हैं ,
छलावे से दूर , हकीक़त में जीने का , सिलसिला मिले *

जीवन के अंजान मरहले पर , बिखरे हुए हैं गम के खार ,
अबलापा - सी राह में , कहीं तो फूलों का काफिला मिले *

कहीं तो दूर बैठी होगी " आनंद ",खुशी की चादर ओढे वक्त ,
कभी तो मेरी पाक दुआओं का असर . या मेरे मौला मिले *

 

--- आनंद थापा