Tuesday, 18 March 2014

क्या बताएं ज़िंदगी ने और क्या दिया.

दोस्ती का हाथ मै ने जब बढ़ा दिया,
फिर नहीं गिना कि किस ने कब दग़ा दिया.
...
उस दिये को आँधियाँ बुझा नहीं सकीं,
जिस को मैं ने ऐतबार से जला दिया.

एक नाव थी कि जो भँवर में फ़ँस गई,
एक भँवर था जिसने तैरना सिखा दिया.

ठोकरें ही रास्ते की हमसफ़र बनीं,
ठोकरों ने ही सफर का हौसला दिया.

बेशुमार दर्द और कुछ हसीन ख़्वाब,
क्या बताएं ज़िंदगी ने और क्या दिया.


--  अशोक रावत.

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