कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए
Kahin door jab din dhal jaye
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए - (2)
मेरे खयालों के आंगन में, कोई सपनों के दीप जलाए
दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
कभी युँ ही जब हुई बोझल साँसे,
भर आई बैठे बैठे जब युँ ही आँखे (2)
तभी मचल के, प्यार से चल के, छुए कोई मुझे पर
नजर न आए, नजर न आए।
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं से निकल आए जनमों के नाते - (2)
है मीठी उलझन, बैरी अपना मन, अपना ही होके सहे,
दर्द पराए, दर्द पराए।
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
दिल जाने, मेरे सारे, भेद ये गहरे,
हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे - (2)
ये मेरे सपने, ये हि तो हैं अपने, मुझसे जुदा न होंगे
इनके ये साये, इनके ये साये
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
मेरे खयालों के आंगन में, कोई सपनों के दीप जलाए
दीप जलाए
http://www.youtube.com/watch?v=w1ezvwoH364
Kahin door jab din dhal jaye
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए - (2)
मेरे खयालों के आंगन में, कोई सपनों के दीप जलाए
दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
कभी युँ ही जब हुई बोझल साँसे,
भर आई बैठे बैठे जब युँ ही आँखे (2)
तभी मचल के, प्यार से चल के, छुए कोई मुझे पर
नजर न आए, नजर न आए।
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं से निकल आए जनमों के नाते - (2)
है मीठी उलझन, बैरी अपना मन, अपना ही होके सहे,
दर्द पराए, दर्द पराए।
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
दिल जाने, मेरे सारे, भेद ये गहरे,
हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे - (2)
ये मेरे सपने, ये हि तो हैं अपने, मुझसे जुदा न होंगे
इनके ये साये, इनके ये साये
कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए,
चुपके सा आए
मेरे खयालों के आंगन में, कोई सपनों के दीप जलाए
दीप जलाए
http://www.youtube.com/watch?v=w1ezvwoH364
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