चांद का ख्वाब उजालों की नज़र लगता है
तू जिधर हो के गुज़र जाए खबर लगता है।
तू जिधर हो के गुज़र जाए खबर लगता है।
उस की यादों ने उगा रखे हैं सूरज इतने
शाम का वक्त भी आए तो सहर लगता है
शाम का वक्त भी आए तो सहर लगता है
एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फितरत
उमर भर आँख की किस्मत में सफर लगता है
उमर भर आँख की किस्मत में सफर लगता है
मैं नज़र भर के तेरे जिस्म को जब देखता हूँ,
पहली बारिश में नहाया सा शज़र लगता है।
पहली बारिश में नहाया सा शज़र लगता है।
बे सहरा था बहुत प्यार कोई पूछता क्या
तू ने कंधे पे जगह दी है तो सर लगता है
तू ने कंधे पे जगह दी है तो सर लगता है
तेरी कुरबत के ये लम्हें उसे रास आएँ क्या
सुबह होने को जिसे शाम सा डर लगता है।
सुबह होने को जिसे शाम सा डर लगता है।
-- वसीम बरेलवी
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