Friday, 31 January 2014

आँखों से बस ढलता रहा हूँ मैं

खुल जाये न आँचल दर्द भरा,सीता रहा हूँ मैं
पीयूष की प्रत्याशा में,विष पीता रहा हूँ मैं -...
हर शब् की सहर होती है इतना तो यकीन है
ले रौशनी की आश अंधेरों में जीता रहा हूँ मैं -

जान कर भी, मधुमास आ चला जायेगा
उँगलियों पर आने के दिन गिनता रहा हूँ मैं-
उदय मालूम नहीं परदेसी का पता हमको
स्नेह की पाती फिर भी लिखता रहा हूँ मैं -

कुछ अदावत रही पैरों से पत्थरों की यक़ीनन
ले जख्म गहरे पांव सफ़र करता रहा हूँ मैं-
फुर्सत न मिली कहीं बैठ कर रो लूँ हालात पर
अश्कों की तरह आँखों से बस ढलता रहा हूँ मैं -

- उदय वीर सिंह

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