Thursday, 28 August 2014

मुझे इजाज़त दे... मुझे इजाज़त दे

हूँ लाख ज़हन का आज़ाद क्या है मेरे पास
सिवाए दिल-ए-बर्बाद क्या है मेरे पास
तुझे सुनाने को रुदात क्या है मेरे पास
के तुझसे इश्क की बुनियाद क्या है मेरे पास

कि मेरे साथ कोई हम मिज़ा़ज भी तो नहीं
कि दसतरस मे मिरी मेरा आज़ भी तो नहीं
कि मेरे कब्ज़े में मेरा समाज भी तो नहीं
कि मेरे पास कोई तख्त-ओ-ताज़ भी तो नहीं
मैं तुझको मांग लूं ऐसा रिवाज़ भी तो नहीं

गिला नहीं है मुकद्दर की नारासाई से
तुझे बचाउँगा इल्ज़ामे बेहयाई से
मैं लड़ ना पाउंगा इतनी बड़ी खुदाई से
मैं तुझको चाहुँगा जस्बों की पारसाई से

मैं अपने होठों की बेरंग रौशनाई से
तेरे लबों पे मुहब्बत का लफ्ज़ लिख दूंगा
मुझे इजाज़त दे... मुझे इजाज़त दे

- Unknown

Saturday, 23 August 2014

रहूँ जब दूर तुझसे मै तो दिल दिल सा नहीं रहता

रहूँ जब दूर तुझसे मै तो दिल दिल सा नहीं रहता
किसीकी फिर ख़बर क्या हो पता अपना नहीं रहता

तिरी क़ुरबत के जलवो से हे रौशन ज़िन्दगी मेरी
तसव्वुर में न हो जो तू तो कुछ जलवा नहीं रहता

बनाया है तेरी यादों को जब से हम सफ़र मैंने
मुझे तुझसे बिछड़ने का कभी ख़तरा नहीं रहता

रहूँ जिस हाल में लेकिन उसूलो से नहीं हटता
उसूलो की तिजारत में कभी घाटा नहीं रहता

ज़माने से भी अब उम्मीद क्या रखना मियाँ बिस्मिल
ज़ियादा देर तक अपना यहाँ साया नहीं रहता

**((अय्यूब खान "बिस्मिल"))**

खुशियों के चार पल ही ढूँढता रहा

खुशियों के चार पल ही ढूँढता रहा 
क्या ढूँढना था मुझको, मैं क्या ढूँढता रहा

अमीरों के शहर में मुझ सा गरीब शख्स 
लेने को साँस, थोड़ी हवा ढूँढता रहा

मालुम था कि मेरी नहीं है कोई खता
फिर भी मैं वहाँ अपनी खता ढूँढता रहा

मालुम था कि मुझ को नहीं मिल सकेगा वो
फिर भी मैं सदा उसका पता ढूँढता रहा

फिर यूँ हुआ कि उससे मुलाकात हो गई
फिर उम्र भर मैं, अपना पता ढूँढता रहा 


- Unknown

Sunday, 17 August 2014

कुछ कह नहीं सकता

बेनाम मुसाफिर हूँ, बेनाम सफर मेरा 
किस राह निकल जाऊँ, कुछ कह नहीं सकता

बेनाम मेरी मंजिल है, बेनाम मेरा ठिकाना है 
किस दर मैं रुक जाऊँ, कुछ कह नहीं सकता 

इस पार तो रोशन है सारा मेरा रास्ता 
उस पार अंधेरा हो, कुछ कह नहीं सकता 

तिनके की तरह मैं भी बह जाऊँ संमदर में
या मिल जायेगा किनारा, कुछ कह नहीं सकता 

मिल जायेगी ताबीर मेरी ख्वाबों की एक दिन 
या ख्वाब बिखर जायेगें, कुछ कह नहीं सकता 

- Unknown

रात की तन्हाईयों में, सब रंग बदल गये हैं

रात की तन्हाईयों में, सब रंग बदल गये हैं
चाँद निकला है वैसे ही, अंधेरे बदल गये हैं

जिन के भरोसे थीं खुशियाँ, वो बादल ठहर गये है
मंजिले तो अब भी वही है, कुछ रास्ते बदल गये हैं

जिनपे था भरोसा हमें, वो दोस्त बिछड़ गये हैं
देखे थे जो ख्वाब हमने, वो ख्वाब बदल गये हैं..

जो बने थे कभी हमसफर, आज वो ही मुकर गये है
इस टूटे हुए दिल के, सारे जज्बात बदल गये हैं..

ना बदले कभी हम, ना बदले हमारे ख्यालात
बस रोना है यही दोस्तों, कुछ लोग बदल गये हैं..

-- Unknown

ज़र्फ को और भी सिवा रखना, रू ब रू जब भी आइना रखना

ज़र्फ को और भी सिवा रखना
रू ब रू जब भी आइना रखना

जिसके फूलों में हो वफ़ा की महक
उस शजर को हरा भरा रखना

जो भी शिकवा हो मुझसे कह दीजे
ऐसी बातों को दिल में क्या रखना

जिनके लहज़े में चाशनी हो बहुत
ऐसे लोगों से फासला रखना

ऐसी हालत में गैर मुम्किन है
याद कुछ भी तिरे सिवा रखना

मेरी फितरत भी है जरूरत भी
अपने लहज़े को खुरदरा रखना

तुम चिराग़ो इन्ही से ज़िन्दा हो
इन हवाओं से राबिता रखना

गुफ्तगू जब किसी से हो 'शायर'
अपना लहज़ा नपा तुला रखना

 शायर * देहलवी 

Saturday, 9 August 2014

पड़ा न फ़र्क़ अनोखी ज़ुबान लिखने से

पड़ा न फ़र्क़ अनोखी ज़ुबान लिखने से
ज़मीं, ज़मीं ही रही आसमान लिखने से

रहा जिस से तआल्लुक़ हर घडी मेरा
वो बन सका न मेरी जान "जान" लिखने से

पनाह मिल न सकी एक पल कभी मुझको
किसी उजाड़ जगह को मकान लिखने से

कड़ी तपिश से झुलसता रहा बदन मेरा
के धूप, धूप रही सायेबान लिखने से ...!!!

- अज्ञात

Saturday, 2 August 2014

आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,

आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;

रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;

कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ;

कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;

तू आगे चल में आता हु, क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है ;

आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।

- Unknown