Sunday, 17 August 2014

ज़र्फ को और भी सिवा रखना, रू ब रू जब भी आइना रखना

ज़र्फ को और भी सिवा रखना
रू ब रू जब भी आइना रखना

जिसके फूलों में हो वफ़ा की महक
उस शजर को हरा भरा रखना

जो भी शिकवा हो मुझसे कह दीजे
ऐसी बातों को दिल में क्या रखना

जिनके लहज़े में चाशनी हो बहुत
ऐसे लोगों से फासला रखना

ऐसी हालत में गैर मुम्किन है
याद कुछ भी तिरे सिवा रखना

मेरी फितरत भी है जरूरत भी
अपने लहज़े को खुरदरा रखना

तुम चिराग़ो इन्ही से ज़िन्दा हो
इन हवाओं से राबिता रखना

गुफ्तगू जब किसी से हो 'शायर'
अपना लहज़ा नपा तुला रखना

 शायर * देहलवी 

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