Saturday, 9 August 2014

पड़ा न फ़र्क़ अनोखी ज़ुबान लिखने से

पड़ा न फ़र्क़ अनोखी ज़ुबान लिखने से
ज़मीं, ज़मीं ही रही आसमान लिखने से

रहा जिस से तआल्लुक़ हर घडी मेरा
वो बन सका न मेरी जान "जान" लिखने से

पनाह मिल न सकी एक पल कभी मुझको
किसी उजाड़ जगह को मकान लिखने से

कड़ी तपिश से झुलसता रहा बदन मेरा
के धूप, धूप रही सायेबान लिखने से ...!!!

- अज्ञात

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