Saturday, 14 June 2014

ठोकरें अपना काम करेंगी तू अपना काम करता चल

ठोकरें अपना काम करेंगी तू अपना काम करता चल
वो गिराएंगी बार बार, तू उठकर फिर से चलता चल

हर वक्त, एक ही रफ्तार से दौड़ना कतई जरुरी नहीं
मौसम की प्रतिकूलता हो, तो थोड़ा सा ठहरता चल

अपने से भरोसा न हटे बस ये ख्याल रहे तुझे सदा
नकारात्मक ख्यालों दूर रहे तुझसे थोड़ा संभलता चल

पसीने की पूंजी लूटाकर दिन रात मंजिल की राह में
दिल के ख़्वाबों को जमीनी हकीकत में बदलता चल

इक दिन में नहीं लगते किसी भी पेड़ पर फल ‘मधु’
पड़ाव दर पड़ाव अपनी मंजिल की ओर सरकता चल

सर मधुसूदन चौबे

वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा

जाने क्या थी वो मंजिल जिसके लिए
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा

जागा सुबह भीगी पलकें लिए
रात भर मेरा माजी बरसता रहा

खता तो अभी तक बताई नहीं
सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा

कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी
बस हर दिन आइना बदलता रहा

कसम दी थी उसने न लब खोलने की
दबा दर्द दिल में सुलगता रहा

खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू
वो कहती रही और मैं सुनता रहा

बेईमान तरक्की किये बेहिसाब
मैं ईमान लेकर भटकता रहा

सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी
मैं टूटता रहा, जग परखता रहा

खिलौना न मिल पाया शायद उसे
खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा

न पाया कोई फूल सूखा हुआ
वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा

- अज्ञात

निगाहों का उजाला ठोकरों से कम नहीं होता,

निगाहों का उजाला ठोकरों से कम नहीं होता,
बढ़े चलिए अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता.

मुझे इतिहास की हर एक घटना याद है,फिर भी,
पड़ौसी पर कभी मेरा भरोसा कम नहीं होता.

भरोसा जीतना है तो ये ख़ंजर फैंकने होंगे,
किसी हथियार से अम्नो-अमाँ क़ायम नहीं होता.

परिंदों की नज़र में पेड़ केवल पेड़ होते हैं,
कोई पीपल, कोई बरगद,कोई शीशम नहीं होता.

नहीं होता मनुष्यों की तरह कोमल हृदय कोई,
मनुष्यों की तरह कोई कहीं निर्मम नहीं होता.

न जाने क्या गुज़रती होगी उसके दिल पे ऐसे में,
वो रोता भी है, दामन उसका लेकिन नम नहीं होता.

मेरे भारत की मिट्टी में ही कोई बात है वरना,
कोई गाँधी नहीं होता, कोई गौतम नहीं होता.

अशोक रावत

Friday, 13 June 2014

खुद को मात न कर

जब तक जिन्दा है तू मरने की बात न कर 
ऐ! कायरों की तरह आंसू की बरसात न कर

एक बाजी हारा है अभी जिंदगी बाकी है बहुत 
अपने हाथों से अपने पैरों पर आघात न कर

जीवन शतरंज की बिगड़ी बाजी संवर सकती है 
शह का जवाब दे जरा खुद को मात न कर

तू विराट हो सकता है अनंत आकाश जैसा
गमले में उगकर बहुत छोटी औकात न कर

यहाँ हर कोई केवल अपने में मस्त है ‘मधु’
इन पत्थरों के सामने तू बयाँ जज्बात न कर

-डॉ. मधुसूदन चौबे 

वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने।

वफ़ा के शीश महल में सजा लिया मैंने,
वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने।
यह सोच कर कि न हो ताक में खुशियाँ,
ग़मों की ओट में ख़ुद को छिपा लिया मैंने।
कभी न ख़त्म किया मैंने रौशनी की मुहाज़,
अगर चिराग बुझा, दिल जला लिया मैंने।
कमाल यह है कि जो दुश्मन पे चलना था,
वो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैंने।
जिसकी अदावत में एक प्यार भी था,
उस आदमी को गले से लगा लिया मैंने।

- अज्ञात

Wednesday, 11 June 2014

आप हैं,, वो हैं,,, हम हैं सबके अपने-अपने ज़ख़म हैं

आप हैं,, वो हैं,,, हम हैं
सबके अपने-अपने ज़ख़म हैं
चलाइये, वक्त की गिन्नी भी चलेगी
ज़िन्दगियाँ ख़र्च होती रक़म हैं
उसका दावा है वो एक ही बार मरेगा
ऐसे लोग दुनियाँ में बहुत कम हैं

--- Somesh Shukla ---

लेकिन कभी बन्दों की इबादत नहीं करता

वो चाहने वालों को मुखातिब नहीं करता
और तर्क-ए-तालुक की मैं वजाहत नहीं करता

वो अपनी जफ़ाओं पे नादिम नहीं होता
मैं अपनी वफाओं की तिजारत नहीं करता

खुशबू किसी ताश-हीर की मुहताज नहीं होती
सच्चा हूँ मगर अपनी वकालत नहीं करता

एहसास की सूली पे लटक जाता हूँ अक्सर
मैं जब्र-ए-मुसल्सल की शिकायत नहीं करता

मैं अजमत-ए-इन्सान का कायल तो हूँ मोहसिन
लेकिन कभी बन्दों की इबादत नहीं करता

--मोहसिन नक़वी 

उसको फुर्सत ही नहीं वक़्त निकाले मोहसिन

उसको फुर्सत ही नहीं वक़्त निकाले मोहसिन
ऐसे होते हैं भला चाहने वाले मोहसिन

याद की दश्त में फिरता हूँ मैं नंगे पांव
देख तो आ के कभी पांव के छाले मोहसिन

खो गई सुबह की उम्मीद और अब लगता है
हम नहीं होंगे कि जब होंगे उजाले मोहसिन

वो जो इक शख्स मता-ए-दिल-ओ-जान था
न रहा
अब भला कौन मेरे दर्द संभाले मोहसिन

--मोहसिन नक़वी