Friday, 13 June 2014

वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने।

वफ़ा के शीश महल में सजा लिया मैंने,
वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने।
यह सोच कर कि न हो ताक में खुशियाँ,
ग़मों की ओट में ख़ुद को छिपा लिया मैंने।
कभी न ख़त्म किया मैंने रौशनी की मुहाज़,
अगर चिराग बुझा, दिल जला लिया मैंने।
कमाल यह है कि जो दुश्मन पे चलना था,
वो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैंने।
जिसकी अदावत में एक प्यार भी था,
उस आदमी को गले से लगा लिया मैंने।

- अज्ञात

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