जाने क्या थी वो मंजिल जिसके लिए
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा
जागा सुबह भीगी पलकें लिए
रात भर मेरा माजी बरसता रहा
खता तो अभी तक बताई नहीं
सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा
कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी
बस हर दिन आइना बदलता रहा
कसम दी थी उसने न लब खोलने की
दबा दर्द दिल में सुलगता रहा
खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू
वो कहती रही और मैं सुनता रहा
बेईमान तरक्की किये बेहिसाब
मैं ईमान लेकर भटकता रहा
सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी
मैं टूटता रहा, जग परखता रहा
खिलौना न मिल पाया शायद उसे
खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा
न पाया कोई फूल सूखा हुआ
वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा
- अज्ञात
उम्र भर मैं सफर तय करता रहा
जागा सुबह भीगी पलकें लिए
रात भर मेरा माजी बरसता रहा
खता तो अभी तक बताई नहीं
सजा जिसकी हर पल भुगतता रहा
कमी ढूंढ पाया न खुद में कभी
बस हर दिन आइना बदलता रहा
कसम दी थी उसने न लब खोलने की
दबा दर्द दिल में सुलगता रहा
खामोशी से कल फिर हुई गुफ्तगू
वो कहती रही और मैं सुनता रहा
बेईमान तरक्की किये बेहिसाब
मैं ईमान लेकर भटकता रहा
सितारे के जैसी थी किस्मत मेरी
मैं टूटता रहा, जग परखता रहा
खिलौना न मिल पाया शायद उसे
खुदा का दिल मुझसे बहलता रहा
न पाया कोई फूल सूखा हुआ
वक्त के पन्ने मैं पलटता रहा
- अज्ञात
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