Saturday, 18 April 2015

End of the story.. Thanks all who came and viewed me.. but Sorry I wont be able to continue

End of the story.. Thanks all who came and viewed me.. but Sorry I wont be able to continue

समय है,
पर समय कहां है
वर्तमान में व्यस्त हो जाना
आखिर कहां मना है
लिखने को मन करता तो है
पर मैने ही मना कर रखा है
इस सफर का भी है आखिरी पड़ाव
ये भी मैने ही तय कर रखा है
वक्त को व्यस्त करना मजबूरी है
यादों के अतीत से निकलना भी ज़रूरी है
खुद को सलीके से काम में उलझाना है अब
स्वयं के मनतरंगो को सुलझाना है अब
इंतेज़ार व्यर्थ है और वजह भी कहाँ छोड़ी थी
मैं जहां था निपट तन्हा, उसने भी तभी नज़र मोड़ी थी
खुद को संभाल कर, उन अवसादों से उभार लिया है
दर्द से निकल कर, खुद को निखार लिया है
अब ये फैसला भी, न लिखने का ठीक ही है
हाँ इस पन्ने का आखिरी पड़ाव अब नज़दीक ही है।

-- निःशब्द

Monday, 19 January 2015

अगर सवाल खड़े होने लगे तो प्यार झूठा है

अगर सवाल खड़े होने लगे तो प्यार झूठा है
मिलके भी नहीं मिल पाए तो इंतजार झूठा है

रोटी से निवाला तोड़ने का मन न करे अगर
बुद्ध बनने को निकल पड़ो ये घर बार झूठा है

कहाँ होती हैं फूलों की सेज, ज़िन्दगी की राहें
काँटों पर साथ नहीं चल सके वो यार झूठा है

चींख जोर से मगर आवाज न होने पाए कोई
आत्मा से रब तक न पहुंचे तो गुहार झूठा है

तुम्हें रब ने गढ़ा तो तुम फिर ऐसे क्यों ‘मधु’
या तो तुम झूठे या फिर वो कुम्हार झूठा है

डॉ. मधुसूदन चौबे



अजीब अहमक है

आदमी जाने क्या क्या संभालकर रखता है
अजीब अहमक है, आंसू पाल कर रखता है

मार डालेगी एक दिन अतीत की परछाइयाँ
फिर भी उन्हें आदमी देखभाल कर रखता है

कागज़ पर उन उँगलियों से बना था सितारा
अपनी जान से ज्यादा ख्याल कर रखता है

घर के साथ कहीं ख़ाक न हो जाए जिन्दगी
पुरानी तस्वीर को जेब में डालकर रखता है

बाकी तो सब आनी, जानी, फ़ानी है ‘मधु’
शाश्वत यादों से खुद को निहालकर रखता है

डॉ. मधुसूदन चौबे

वोह बातों-बातों में आँखों में पानी दे गया


काश वह लौट आये मुझ से यह कहने
तुम होते कौन हो मुझ से बिछड़ने वाले

~~~~~~~

ज़िन्दगी भर जिसे दोहरा सकु ऐसी कहानी दे गया
वोह बातों-बातों में आँखों में पानी दे गया.....

वोह अपने साथ मेरी दुनिया भी ले जा रहा था
मुझे तो सिर्फ वोह अपनी यादों की निशानी दे गया

एक दूजे को अलविदा कहना न उसे आया न मुझे
वक़्त-ए-रुखसत की वोह एक शाम सुहानी दे गया

ज़िन्दगी यूह गुज़र रही थी जैसे बस अब थम जायेगी
मेरा साथ दे कर मेरी ज़िंदगी को वोह जवानी दे गया

अगर मंज़िलें जूदा है तो जुदा ही सहीं "ख्वाहिश"
ज़िन्दगी के कुछ पलों को वोह ज़िन्दगानी दे गया


~~~~~ख्वाहिश~~~~~

नये ग़म चाहिये होते हैं कभी पुराने ग़म को भुलाने के लिये

कोइ चलता है फक़त दो कदम साथ निभाने के लिये
बहुत वक्त लग जाता है किसी को अपना बनाने के लिये

खामोशियों की कोइ आवाज नहीं होती, ये दुनिया जानती है
चीख उठती हैं खामोशियाँ भी, कभी कुछ सुनाने के लिये

गुजर चुका हैं उम्मीदों का काफ़िला कुछ यूँ मेरी राह से
सोचता हूँ एक ग़म और मिल जाये अब, खुद को आज़माने के लिये

हमने समझा है इस ज़माने की बेरुखी को बड़ी देर के बाद
यहाँ हौंसला चाहिये 'प्यारे' बेवजह मुस्कुराने के लिये

मुझे आता भी नहीं था कभी अपने जख्मो की नुमाइश करना
जानता हूँ, कोइ नहीं मिलता तुम्हें अपने सीने से लगाने के लिये

हमें पुकार लो जब चाहो हम मिलेगें वहीं जहां बिछड़े थे
बस इतना समझ लो, हम हाथ नहीं मिलाते कभी छुड़ाने के लिये

'ख्वाहिश' यहां सभी लोग जिदंगी जीने का फ़न जानते हैं
नये ग़म चाहिये होते हैं कभी पुराने ग़म को भुलाने के लिये

- ख्वाहिश

आखिरी पड़ाव नज़दीक है - This Blog gonna end soon :(

समय है,
पर समय कहां है
वर्तमान में व्यस्त हो जाना
आखिर कहां मना है
लिखने को मन करता तो है
पर मैने ही मना कर रखा है
इस सफर का भी है आखिरी पड़ाव
ये भी मैने ही तय कर रखा है
वक्त को व्यस्त करना मजबूरी है
यादों के अतीत से निकलना भी ज़रूरी है
खुद को सलीके से काम में उलझाना है अब
स्वयं के मनतरंगो को सुलझाना है अब
इंतेज़ार व्यर्थ है और वजह भी कहाँ छोड़ी थी
मैं जहां था निपट तन्हा, उसने भी तभी नज़र मोड़ी थी
खुद को संभाल कर, उन अवसादों से उभार लिया है
दर्द से निकल कर, खुद को निखार लिया है
अब ये फैसला भी, न लिखने का ठीक ही है
हाँ इस पन्ने का आखिरी पड़ाव अब नज़दीक ही है।

-- निःशब्द

Tuesday, 13 January 2015

कभी तुझ पर ऐ खुदा कभी खुद पर नाज़ कर डाला

जब जब लगा किस्मत ने हमें नज़रअंदाज़ कर डाला
एक नए सफर का हम ने तब आग़ाज़ कर डाला ,

गैरों को खुश करने की कीमत यूँ है चुकाई,
अपने किसी अज़ीज़ को हम ने नाराज़ कर डाला ,

बिखरे बिखरे नज़र आ रहे थे सुर हमको इसके
दुरुस्त हमने इक बार फिर दिल का साज़ कर डाला ,

हर बार हम ने अपना लीं हैं ज़माने की हर रवायत,
हर बार ज़माने ने क्यों इस पर ऐतराज़ कर डाला ,

एक नया किस्सा अब मुझमे जवान हो रहा है,
एक पुरानी कहानी को उम्रदराज़ कर डाला

इश्क हमारा तुम पर जब हो ही न पाया ज़ाहिर
दिल की अंदरूनी तह में दफ़न ये राज़ कर डाला ,

ये सोच कर कि हिस्सा हूँ मैं इस कायनात का तेरी,
कभी तुझ पर ऐ खुदा कभी खुद पर नाज़ कर डाला ,

चन्द्र शेखर वर्मा

Sunday, 11 January 2015

अभी तो मेरे किस्सों की दास्तान बाकी है

डूब रही है सांसें मगर ये गुमान बाकी है
आने का किसी शख्स के अभी इकमान बाकी है

मुद्दत हुई इक शख्स को बिछड़े हुए लेकिन
आज तक मेरे दिल में एक निशान बाकी है

वो सायबान छिन गया तो कोइ ग़म नहीं
अभी तो मेरे सर पे ये आसमान बाकी है

कश्ति जरा किनारे के करीब ही रखना
बिखरी हुइ लहरों में अभी तूफान बाकी है

उसके अश्कों ने लब सी दिये वरना
अभी तो मेरे किस्सों की दास्तान बाकी है

- अज्ञात 

Sunday, 4 January 2015

चल आ एक बार फिर जिंदगी से प्यार करते हैं

खारे आंसुओं पर मीठी मुस्कान से वार करते हैं
चल आ एक बार फिर जिंदगी से प्यार करते हैं

आखिर ये चुनौतियाँ कब तक उठा पाएंगी गर्दनें
इन्हें काट फेंकने को हौंसले पर तेज धार करते हैं

जो छुट गया उससे बेहतर मिलेगा तू यकीन रख
आशा और विश्वास के बाग़ को सदाबहार करते हैं

मन की महक के साथ तन चमके तो बुरा क्या
नये जूते, कपड़े, टाई, हेयर डाई से श्रृंगार करते हैं

घर के आलिये में रख दृढ़ता के कई सूरज ‘मधु’
आँखों के आत्मविश्वास से दूर अन्धकार करते हैं


-डॉ. मधुसूदन चौबे

Friday, 2 January 2015

मेरे आँसूं और ये तारे एक से हैं

दीपक, जुगनू, चाँद, सितारे एक से हैं
यानी सारे इश्क के मारे एक से हैं

हिज्र की शब में देख तो आके मेरे चाँद
मेरे आँसूं और ये तारे एक से हैं

दरिया हूँ मैं बैर-भाव मैं क्या जानू
मेरे लिये तो दोनो किनारे एक से हैं

मेरी कश्ती किसने डुबोई क्या मालूम
सारी लहरें, सारे धारे एक से हैं

कुछ अपने, कुछ बेगाने और मैं खुद
मेरी जान के दुश्मन सारे एक से हैं

-अज्ञात