Tuesday, 13 January 2015

कभी तुझ पर ऐ खुदा कभी खुद पर नाज़ कर डाला

जब जब लगा किस्मत ने हमें नज़रअंदाज़ कर डाला
एक नए सफर का हम ने तब आग़ाज़ कर डाला ,

गैरों को खुश करने की कीमत यूँ है चुकाई,
अपने किसी अज़ीज़ को हम ने नाराज़ कर डाला ,

बिखरे बिखरे नज़र आ रहे थे सुर हमको इसके
दुरुस्त हमने इक बार फिर दिल का साज़ कर डाला ,

हर बार हम ने अपना लीं हैं ज़माने की हर रवायत,
हर बार ज़माने ने क्यों इस पर ऐतराज़ कर डाला ,

एक नया किस्सा अब मुझमे जवान हो रहा है,
एक पुरानी कहानी को उम्रदराज़ कर डाला

इश्क हमारा तुम पर जब हो ही न पाया ज़ाहिर
दिल की अंदरूनी तह में दफ़न ये राज़ कर डाला ,

ये सोच कर कि हिस्सा हूँ मैं इस कायनात का तेरी,
कभी तुझ पर ऐ खुदा कभी खुद पर नाज़ कर डाला ,

चन्द्र शेखर वर्मा

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