Sunday, 15 September 2013

क्यों पूछते हो, क्या तुमसे कहूँ.. मैं किस लिए जीता हूँ

क्यों पूछते हो, क्या तुमसे कहूँ
मैं किस लिए जीता हूँ
शायद के कभी मिल जाओ कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ

जीने का मुझे कुछ शौक नहीं
बस वक्त गुज़ारा करता हूँ
कुछ देर उलझ कर यादों में
दुनिया से किनारा करता हूँ

मरता भी उसी के खातिर हूँ
मैं जिस लिए जीता हूँ
शायद के कभी मिल जाओ कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ

मैं हूँ के सुलगता रहता हूँ
बुझता भी नहीं, जलता भी नहीं
दिल है के तड़पता रहता है
रुकता भी नहीं चलता भी नहीं
जीने की तमन्ना मिट ही चुकी
फिर किस लिए जीता हूँ
शायद के कभी मिल जाओ कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ

क्यों पूछते हो, क्या तुमसे कहूँ
मैं किस लिए जीता हूँ
शायद के कभी मिल जाओ कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ

http://youtu.be/QY162dx1VJs

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