उम्र खुशियों में बसर हो जरूरी तो नहीं
फिर शब-ए-ग़म की सहर हो जरूरी तो नहीं
नींद तो दर्द को बिस्तर पर भी आ सकती है
उनकी आगोश में सिर हो जरूरी तो नहीं
मुहब्बत को लोगों ने खेल समझ रखा है
इसके मतलब से सब आशना हो जरूरी तो नहीं
हर दुआ में मांगते हैं तो बस उन्हें
हमारी हर दुआ में हो असर जरूरी तो नहीं
हमासी जिन्दगी में बस उन्हीं की कमी है
उन्हें भी हमारी जरूरत हो ये जरूरी तो नहीं।
अज्ञात..
फिर शब-ए-ग़म की सहर हो जरूरी तो नहीं
नींद तो दर्द को बिस्तर पर भी आ सकती है
उनकी आगोश में सिर हो जरूरी तो नहीं
मुहब्बत को लोगों ने खेल समझ रखा है
इसके मतलब से सब आशना हो जरूरी तो नहीं
हर दुआ में मांगते हैं तो बस उन्हें
हमारी हर दुआ में हो असर जरूरी तो नहीं
हमासी जिन्दगी में बस उन्हीं की कमी है
उन्हें भी हमारी जरूरत हो ये जरूरी तो नहीं।
अज्ञात..
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