देखना, वक्त तेरा भी बदलेगा ये बदलता है
ठोकर खाकर व्यक्ति गिरता है, संभलता है
बाधाओं का काम है आना आती हैं आएंगी
आदमी में शक्ति है वो लड़ता है निपटता है
ओले, आंधियां, बिजलियाँ, जलजले, बाढ़ें
इनके सामने आदमी का जज्बा मचलता है
एक दिन में नहीं पहुँचता कोई हिमालय पे
चलता है डरता है थमता है फिर चलता है
जब भी तकलीफें आती हैं ‘ऊपर’ से ‘मधु’
लड़ता है जूझता है और आदमी निखरता है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
ठोकर खाकर व्यक्ति गिरता है, संभलता है
बाधाओं का काम है आना आती हैं आएंगी
आदमी में शक्ति है वो लड़ता है निपटता है
ओले, आंधियां, बिजलियाँ, जलजले, बाढ़ें
इनके सामने आदमी का जज्बा मचलता है
एक दिन में नहीं पहुँचता कोई हिमालय पे
चलता है डरता है थमता है फिर चलता है
जब भी तकलीफें आती हैं ‘ऊपर’ से ‘मधु’
लड़ता है जूझता है और आदमी निखरता है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
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