Sunday, 26 October 2014

क्यों है

आँखों में डर और चेहरे पे पसीना क्यों है
अगर यही है जीना तो फिर जीना क्यों है

तू बैठा है घर, वो आसमां पर पहुंच गया
फिर न पूछना तू मिट्टी वो नगीना क्यों है

जर्रे जर्रे में है जब जहाँ को बनाने वाला
फिर जग में एक काशी एक मदीना क्यों है

एक सांवला चाँद उगने ही वाला था छत पे
वक्त ने ये ख्वाब देकर फिर छीना क्यों है

हर फल पकने से पहले सड़ जाता है ‘मधु’
मेरे लिए ही ये भाग्य सदा कमीना क्यों है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Saturday, 25 October 2014

अगर चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

बस ये हसरत है कि दामन की हवा दो मुझको
फिर अगर चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

शमअ की तरहां मैरे पहलु में पिघलो तो सही
अपनी क़ुर्बत की तपिश देके ही जला दो मुझको

ख़त्म क़िस्सा ये करो या तो मेरी जाँ लेकर
राह जीने की नई या के बता दो मुझको

टूट जाये ये मेरी तुम से सभी उम्मीदें
आज मौक़ा है चलो कोई दग़ा दो मुझको

ज़ख़्म सब भरने लगे जीना हुआ मुश्किल सा
करके ईजाद सितम कोई नया दो मुझको

तुमसे वाबस्ता अगर ग़म है मुझे प्यारे हैं
कब कहा मैंने मसर्रत की दुआ दो मुझको

तुमसे करता तो है इज़हारे तमन्ना बिस्मिल
देखो ऐसा न हो नज़रों से गिरा दो मुझको

**(( अय्यूब ख़ान "बिस्मिल"))**

Tuesday, 21 October 2014

ज़ख़्म दानिश्ता मैंने खाया था

दिल ये तुझसे अगर लगाया था
ज़ख़्म दानिश्ता मैंने खाया था

इन्तेहाँ देख ज़ब्त की मैरे
ज़ख़्म खाकर भी मुस्कुराया था

मुझको अपनों का था गुमाँ जिस जाँ
तीर भी उस तरफ से आया था

मुझको हैरत है मैरा दुश्मन ही
वक़्ते गर्दिश में काम आया था

दर्द का नोहा वो बना आखिर
जो मसर्रत का गीत गाया था

दर्द की इन्तिहाँ परखने को
मैंने ख़ुद को ही आज़माया था

हर सफ़र आसां हो गया बिस्मिल
साथ माँ का जो मैरे साया था

अय्यूब ख़ान "बिस्मिल"

Monday, 13 October 2014

ख़ुश्क पत्ते थे हवा से झर गए,

ख़ुश्क पत्ते थे हवा से झर गए,
आँधी समझी पेड़ उससे डर गए.

यूँ समझिए मर गया जिनका ज़मीर,
नाम के ज़िंदा हैं वरना मर गए.

याद जब उसको किया तो ख़ुदब ख़ुद,
रूह तक हम रौशनी से भर गए.

दुश्मनों से फिर भी है कुछ राबिता,
दोस्त तो कब का किनारा कर गए.

- अशोक रावत

Sunday, 12 October 2014

झेले हैं जलजले सीने पर फूलों की तरह

झेले हैं जलजले सीने पर फूलों की तरह
जीवन जिया है गीता के उसूलों की तरह

दुश्मनों का तो खैर काम ही है जान लेना
दोस्त रहे मेरी सबसे बड़ी भूलों की तरह

फेहरिश्त बहुत बड़ी है भूतपूर्व दोस्तों की
आते जाते रहे सावन के झूलों की तरह

इक बार जुदा हुए तो फिर मिल न सके
दो किनारों के बीच टूटे हुए पूलों की तरह

यहाँ पर फूटफूटकर रोना लाजमी है ‘मधु’
तुम्हारे दिए फूल चुभते हैं शुलों की तरह

मधूसूदन चौबे

बदल जाते हैं

मंजिलों के पास जा कर अक्सर, रास्ते बदल जाते हैं
सफर में जिदंगी के अक्सर हमसफर बदल जाते हैं

साहिलों के पास जा कर अक्सर डूबती है कश्तियाँ
लहरों को क्या दोष दें जब मंजर ही बदल जाते हैं

जब तक करीब हैं, तब तक अपनों को अपने मनाते हैं
फ़ासलों के बढ़ जाने से, सारे अपने बदल जाते हैं

वो रिश्तों का बंधन, जो कभी अटूट हो जाता है
कुछ वक्त के बाद क्यूं वो रिश्ते ही बदल जाते हैं

हर वो चीज, जिस से मोहब्बत हो खुद से भी ज्यादा
वक्त के साथ हर उस चीज के मायने बदल जाते हैं

जिन ख्वाबों को आँखों में सजाकर, जागते हैं हम
क्यूं जिदंगी के साथ हर वो ख्वाब बदल जाते हैं

क्या दोष दे उस इंसान को, जिसे भगवान ने बनाया
इंसान क्या चीज है, खुद भगवान बदल जाते हैं

--अज्ञात

Friday, 10 October 2014

सितम भी करता है, हाथ मिला भी देता है

सितम भी करता है, हाथ मिला भी देता है
फिर मेरे हाल पे वो मुस्कुरा भी देता है

मैं जब लड़ता हूँ लहरों से, वो देखता रहे
फिर डुबते हुए को बचा भी देता है

खुद बनता है कभी मेरी राह में दीवार...
तो कभी अपने आप से नई राह दिखा भी देता है

कागज पर मेरा नाम लिख-लिखकर जो रोता रहे
देखने पर, मेरा नाम कागज से मिटा भी देता है

अपने दर्द-ओ-रंज से मुझे रखता है कोसो दूर...
तो कभी छोटी-छोटी बातों से मुझे रुला भी देता है

अनकहे लफ्जों में मतलब ही ढूँढता रहता है कभी
और कभी मेरी कही हुई बातों को वो भुला भी देता है

मुझे देता है हौसँला मुश्किलों में भी मुस्कुराने का और खुद कभी
किसी रोते हुए को देख कर अश्क आँखों से बहा भी देता है

फिर कभी थक-टूटकर कहता है कि मैं हार गया हूँ ,
तो कभी उम्मीद की एक नई शमा दिल में जगा भी देता है

- अज्ञात

Thursday, 9 October 2014

आँख में कोई सितारा हो जरुरी तो नहीं

आँख में कोई सितारा हो जरुरी तो नहीं
प्यार में कोई हमारा हो जरुरी तो नहीं,

ये हकीकत है कि मुझे उससे मोहब्बत है
पर उसी के साथ हो गुजारा जरुरी तो नही,

ये मेरे दर से जो फूलों की महक आती है
ये उसके आने का इशारा तो नही,

डुबते वक्त की नजर उसपे भी तो पड़ सकती है
सामने मेरे किनारा हो जरुरी तो नही,

कम नहीं ये भी कि है ये शहर हमारा लेकिन
शहर में कोई हमारा हो ये जरुरी तो नही,

हो सकती है खता उसका निशाना ए दोस्तों
तीर उसने मुझे मारा हो ये जरुरी तो नहीं..


- अज्ञात

Tuesday, 7 October 2014

पलकों पे आंसूओं को सजाया ना जा सका

पलकों पे आंसूओं को सजाया ना जा सका
उनको दिल का हाल बताया ना जा सका

जख्मों से चूर-चूर था ये दिल मेरा
एक जख्म भी उनको दिखाया ना जा सका

कुछ लोग जिंदगी में ऐसे भी आयें हैं
जिन को किसी भी लम्हें भुलाया ना जा सका

बस इस ख्याल से कहीं उनको दुख ना हो
हम से तो हाल-ए-दिल भी सुनाया ना जा सका

वो मुस्कुराता था मेरे रुबरु मगर
चेहरे का रंग उनसे छुपाया भी ना जा सका

तन्हाइयों की आग में हम जल गये
मगर फ़ासला उनका मिटाया ना सका

-- अज्ञात