आँखों में डर और चेहरे पे पसीना क्यों है
अगर यही है जीना तो फिर जीना क्यों है
तू बैठा है घर, वो आसमां पर पहुंच गया
फिर न पूछना तू मिट्टी वो नगीना क्यों है
जर्रे जर्रे में है जब जहाँ को बनाने वाला
फिर जग में एक काशी एक मदीना क्यों है
एक सांवला चाँद उगने ही वाला था छत पे
वक्त ने ये ख्वाब देकर फिर छीना क्यों है
हर फल पकने से पहले सड़ जाता है ‘मधु’
मेरे लिए ही ये भाग्य सदा कमीना क्यों है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
अगर यही है जीना तो फिर जीना क्यों है
तू बैठा है घर, वो आसमां पर पहुंच गया
फिर न पूछना तू मिट्टी वो नगीना क्यों है
जर्रे जर्रे में है जब जहाँ को बनाने वाला
फिर जग में एक काशी एक मदीना क्यों है
एक सांवला चाँद उगने ही वाला था छत पे
वक्त ने ये ख्वाब देकर फिर छीना क्यों है
हर फल पकने से पहले सड़ जाता है ‘मधु’
मेरे लिए ही ये भाग्य सदा कमीना क्यों है
-डॉ. मधुसूदन चौबे