Friday, 10 October 2014

सितम भी करता है, हाथ मिला भी देता है

सितम भी करता है, हाथ मिला भी देता है
फिर मेरे हाल पे वो मुस्कुरा भी देता है

मैं जब लड़ता हूँ लहरों से, वो देखता रहे
फिर डुबते हुए को बचा भी देता है

खुद बनता है कभी मेरी राह में दीवार...
तो कभी अपने आप से नई राह दिखा भी देता है

कागज पर मेरा नाम लिख-लिखकर जो रोता रहे
देखने पर, मेरा नाम कागज से मिटा भी देता है

अपने दर्द-ओ-रंज से मुझे रखता है कोसो दूर...
तो कभी छोटी-छोटी बातों से मुझे रुला भी देता है

अनकहे लफ्जों में मतलब ही ढूँढता रहता है कभी
और कभी मेरी कही हुई बातों को वो भुला भी देता है

मुझे देता है हौसँला मुश्किलों में भी मुस्कुराने का और खुद कभी
किसी रोते हुए को देख कर अश्क आँखों से बहा भी देता है

फिर कभी थक-टूटकर कहता है कि मैं हार गया हूँ ,
तो कभी उम्मीद की एक नई शमा दिल में जगा भी देता है

- अज्ञात

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