Sunday, 12 October 2014

बदल जाते हैं

मंजिलों के पास जा कर अक्सर, रास्ते बदल जाते हैं
सफर में जिदंगी के अक्सर हमसफर बदल जाते हैं

साहिलों के पास जा कर अक्सर डूबती है कश्तियाँ
लहरों को क्या दोष दें जब मंजर ही बदल जाते हैं

जब तक करीब हैं, तब तक अपनों को अपने मनाते हैं
फ़ासलों के बढ़ जाने से, सारे अपने बदल जाते हैं

वो रिश्तों का बंधन, जो कभी अटूट हो जाता है
कुछ वक्त के बाद क्यूं वो रिश्ते ही बदल जाते हैं

हर वो चीज, जिस से मोहब्बत हो खुद से भी ज्यादा
वक्त के साथ हर उस चीज के मायने बदल जाते हैं

जिन ख्वाबों को आँखों में सजाकर, जागते हैं हम
क्यूं जिदंगी के साथ हर वो ख्वाब बदल जाते हैं

क्या दोष दे उस इंसान को, जिसे भगवान ने बनाया
इंसान क्या चीज है, खुद भगवान बदल जाते हैं

--अज्ञात

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