Monday, 13 October 2014

ख़ुश्क पत्ते थे हवा से झर गए,

ख़ुश्क पत्ते थे हवा से झर गए,
आँधी समझी पेड़ उससे डर गए.

यूँ समझिए मर गया जिनका ज़मीर,
नाम के ज़िंदा हैं वरना मर गए.

याद जब उसको किया तो ख़ुदब ख़ुद,
रूह तक हम रौशनी से भर गए.

दुश्मनों से फिर भी है कुछ राबिता,
दोस्त तो कब का किनारा कर गए.

- अशोक रावत

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