Tuesday, 11 November 2014

उनीदी करवटों में रात जब बेचैन होती है

उनीदी करवटों में रात जब बेचैन होती है ।।
तेरे सपनों की सरग़ोशी मेरी पलकें भिगोती है ।।

सुरीले पल कभी जो साथ हमने गुनगुनाये थे ।
उन्हीं पर ज़िन्दगी अब बेसुरी सी उम्र ढोती है ।।

कभी जब प्यार का वो भूला-बिसरा गीत सुनता हूँ ।
'तेरे ओंठों की ख़ामोशी - मेरी आँखों में होती है ।।'

हैं इतने व्यस्त हम इस रोज़ के घाटे-मुनाफ़े में ।
न तेरा दर्द दुखता है, न मेरी पीर रोती है ।।

कभी फ़ुर्सत मिले तो झील के उस मोड़ पर मिलना !
जहां तू मुस्क़ुराती है तो मेरी सुबह होती है ।।


त्रिवेणी पाठक

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