Tuesday, 11 November 2014

खुद को बदलना चाहता हूँ

बदलना चाहता हूँ,
जमाने की परवाह नहीं अब
बस खुद को ही
बदलना चाहता हूँ।

जमाने ने सिखाया क्या
क्या सीखा जमाने से
सब कुछ भूलकर अब
इक नई दुनिया में गुज़रना चाहता हूँ
खुद को बदलना चाहता हूँ.

उम्मीदों के दलदल से
भावनाओँ के जलज़ले से
अपने ही आप से
बस दूर निकलना चाहता हूँ
खुद को बदलना चाहता हूँ.

हर हकीकत से दूर
न किसी ख्वाब से मजबूर
किसी अजनबी दुनिया में
खुद को भुलाना चाहता हूँ
बस खुद को बदलना चाहता हूँ.

ये हंसना हँसाना किस लिए
युँ बेवजह मुस्काना किस लिए
उन यादों को छुपाना किस लिए
गमों को भूलने का बहाना किस लिए
कोई अपना कोई बेगाना किस लिए
जिन्दगी का ये फसाना किस लिए
औरों की हौसला दे तो दिए, पर
अपने ही अश्को को छुपाना किस लिए
कुदरत का किसी को बिछड़ना मिलाना किस लिए
जिन्हें हम याद नहीं, उनका याद आना किस लिए
सवाल ही सवाल, जवाब नहीं कोई
फिर इन बेकार सवालों का ज़हन में आना किस लिए
भावनाओं में कभी कोई मैल न हुआ मेरी, फिर अपनी ही
इन भावनाओँ से नफरतों का ज़माना किस लिए
ये मैं हूँ, या कोई और है, या मैं हू भी की नहीं हूँ
अपनी ही तालाश में खुद को यूँ भटकाना किस लिए

ये यादों का झोंका मुझे क्यों इतना झकझोर जाता है
संभाला है बड़ी मुश्किल से खुद को, इसे तोड़ जाता है
खुद को अब बस पत्थर दिल बनाना चाहता हूँ
हाँ अब मैं खुद बदल जाना चाहता हूँ।
बस बदलना चाहता हूँ।

-- I Doesn't Matter

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