Sunday, 20 April 2014

न रहा शिकवा कभी किस्मत की बेवफाई का

न रहा शिकवा कभी किस्मत की बेवफाई का,
न ही कोई गिला मेरे रहबर की जुदाई का.

छोड़ गया साथ मेरा तो क्या हुआ,
आज भी महकता है चेहरा उसकी वफाई का.

मेरी रूह से उसका नाता सदियों पुराना,
भला कैसे होगा अहसास बोझिल तन्हाई का.

न मेरा कोई हमपेशा न कोई हमराज़,
क्या करूँगा लेकर उधार किसी की दुहाई का.

बस जब तक जिऊ उसकी यादों के साथ रहू,
नहीं वहशत कहने में क्या करूँगा खुदाई का.

- Lucky Sai..

नहीं देखा

मैं रोया तो बहुत मगर मुझे बिलखते नहीं देखा
मेरे साये ने भी कभी मुझे सिसकते नहीं देखा ...

हर वक्त रहा एकाकी और सहता गया सब कुछ
सहारे के लिए मुझे किसी से लिपटते नहीं देखा

मैं चला हूँ, दौड़ा हूँ, उड़ा हूँ बस अपने हौंसलों से
पैर कट गये मगर किसी ने घिसटते नहीं देखा

इतिहास में जो पढ़ा था उसे सच ही पाया मैंने
संघर्ष के बिना किसी को कभी निखरते नहीं देखा

ये दुनिया का आठवां आश्चर्य है कि नहीं ‘मधु’
जर्रे जर्रे हो गया है वजूद पर बिखरते नहीं देखा

M Choubey

Saturday, 19 April 2014

तू एक सपना है या बस इक परछाई है

तू एक सपना है या बस इक परछाई है
मगर मेरे लिए जीवन भर की कमाई है...

धड़कन दिल से जुदा हुई फिर भी जिया
कभी भी कह न सका कि तू हरजाई है

तेरे जाने के बाद भी मैं कहाँ हूँ अकेला
यादों ने साथ रहने की कसम निभाई है

कहाँ बसा लूं किसी और को कोई बताये
मेरी रग रग में वो एक मूरत समाई है

जब भी मोहब्बत पर लिखने बैठा ‘मधु’
इक सांवली सलोनी सूरत नजर आई है

- M Choubey

Thursday, 17 April 2014

अब जो बिखरे तो बिखरने की शिकायत कैसी?


अब जो बिखरे तो बिखरने की शिकायत कैसी?
 खुश्क पत्तों की है हवाओं से ये रिफाकत कैसी?

 मैंने तो हर दौर में उस शख्स से मोहब्बत की है
 जुर्म तो ये संगीन है अब इसमें रियायत कैसी?

 एक पत्ता भी अगर शाख से अपने जुदा होता है
 क्या कहूँ दिल पे है ये गुज़रती क़यामत कैसी?

 ज़िन्दगी तू उस शख्स के बिना लम्हों का सफ़र है
 ना जाने राह में आ गई सदियों की मुसाफ़त कैसी?

- अज्ञात

Sunday, 13 April 2014

मत पूछ

कितनी मुश्किल से कटी कल की रात, मत पूछ
दिल से निकली हुई होठों में दबी बात, मत पूछ..

वक्त जो बदले तो इंसान बदल जाते हैं
क्या नहीं दिखलाते गर्दिश-ए-हालात, मत पूछ..

वो किसी का हो भी गया और मुझे खबर भी ना हुई
किस तरह उसने छुड़ाया है मुझसे हाथ, मत पूछ..

इस तरह पल में मुझे बेगाना कर दिया उसने
किस तरह अपनों से खाई है मैनें मात, मत पूछ..

अब तेरा प्यार नहीं है तो सनम कुछ भी नहीं
कितनी मुश्किल से बनी थी दिल की कायनात, मत पूछ..


---  अज्ञात

उसके प्यार में मैं -- राख हो गया

उसके प्यार में मैं, राख हो गया
उसके गुनाहों की, खुराक हो गया

सुना है, कईं लोग आबाद हो गए
मैं इस मोहब्बत में, खाख हो गया

भूले से भी मैं , तुझे भूल नहीं पाता
मेरे साथ ये क्या, इत्तेफाक हो गया

ढूँढ रहा हूँ बारिश की गीली बूंदों को
किसी दरख़्त की सूखी,शाख हो गया

हर मौसम करते हैं, यहाँ लोग इसे
इश्क न हुआ कोई, मज़ाक हो गया

मेरी कब्र पे हाथ फेरा है उसने आज ****
ऐ खुदा, मैं दामन-ए- पाख हो गया

लाख का था, जिंदा हाथी की तरह ****
ऐसा मरा के, सवा लाख हो गया

- कौशल पुनीत

बेपरवाह रहना

आंधियां दौड़ेंगी नन्हे दीप तुम्हें बुझाने को
मगर दो हथेलियाँ सहारा बनेंगी बचाने को ...

कदम थम न जाए आख़िरी मंजिल से पहले
हौंसला दिल में होता है हर बाधा हटाने को

नजरें चौकन्नी हों और चाल में दृढ़ता रहे
लोग टंगड़ियाँ अड़ाएंगे तुम्हें लड़खड़ाने को

जमीं फाड़कर उग आये हो तो चौकस रहना
कई पैर आगे बढ़ेंगे नये पौधे के दबाने को

इंसान की नाखुशी से बेपरवाह रहना ‘मधु’
फूल, पंछी, किताबें हैं साथ खिलखिलाने को

- M Choubey

Tuesday, 8 April 2014

तरसते थे राम



सीता तुम्हें, तुम सीता को समझते थे राम
दो जोड़ी आँखों से महासागर बरसते थे राम

अहल्या का उद्धारक क्रूर नहीं हो सकता है
इतिहास जानता है तुम बहुत तरसते थे राम

वस्त्रों की सलवटें संवार दे नाजुक उँगलियाँ
महल से निकलने से पहले ठहरते थे राम

धरा से महाप्रयाण को कितने उत्सुक थे तुम
बिन सीता जिंदगी के लम्हे अखरते थे राम

प्रथम दर्शन, धनुष भंग, निर्वासन संग ‘मधु’
रोते रोते खट्टी मीठी यादों से गुजरते थे राम

-- मधुसूदन चौबे

Monday, 7 April 2014

कुछ भी तो नहीं हांसिल यहाँ अश्क बहाने से

कुछ भी तो नहीं हांसिल यहाँ अश्क बहाने से
मुश्किलें भी कम होती हैं प्यारे मुस्कुराने से

तमाशा बन कर रह जाओगे सबकी नज़रों में तुम
सामना करो, कहाँ जाओगे भाग कर इस ज़माने से

इन पत्थरों से मंजिल तक का रास्ता ज्यादा दूर नहीं,
जो पेड उँचा खड़ा है, शुरू हुआ था वो भी इक दाने से

आसां नहीं है, करना पड़ता है 'एक' खून पसीना अपना
शौहरतें यूं ही नहीं मिल जाती किसी भी कारखाने से

पढ़ने वाले पढ़ लेते हैं चेहरों को हर हाल में
मुमकिन नहीं के छुप ही जाए हर चीज छुपाने से

शर्तों के दाम पर भी रिश्तों को निभाने चले हो
वाह 'ख्वाहिश" तुम भी बाज़ न आओगे चोट खाने से।


-- ख्वाहिश

Sunday, 6 April 2014

'वफा' कुछ और होती है

'वफा' इस को नहीं कहते, 'वफा' कुछ और होती है
मोहब्बत करने वालों की 'अदा' कुछ और होती है

तुम्हें देखा, तुम्हें चाहा, तुम ही से प्यार कर बैठे
सुनो पत्थर के दिल वालों, मोहब्बत ऐसी होती है

अगरचे ग़म का मारा हूँ, मगर तुम को ना भुलूंगा
के दीवानो के होठों पर 'दुआ' कुछ और होती है

तड़प उठेगी ये दुनिया अगर रोयेगा 'दिल' मेरा
कि दिल से जो निकलती है 'सदा' कुछ और

- अज्ञात

Thursday, 3 April 2014

मेरे बाद किधर जायेगी तन्हाई

मेरे बाद किधर जायेगी तन्हाई
मैं जो मरा तो मर जायेगी तन्हाई,

 मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊँगा
उस दिन पार उतर जायेगी तन्हाई,

 तन्हाई को घर से रुखसत कर तो दो
सोचो किस के घर जायेगी तन्हाई,...

 वीराना हूँ आबादी से आया हूँ
देखेगी तो डर जायेगी तन्हाई,

 यूं आओ कि पांव की भी आवाज ना हो
शोर हुआ तो मर जायेगी तन्हाई .
 

 ----------अज्ञात--------------


माँ के पैर छूकर जाना

अकेला आया, अकेला रह, अकेले ही गुजर जाना
कोई साथ देने का वादा करे तो जल्द मुकर जाना...

आदमियत पर भरोसा करते रहना बेवकूफी है बड़ी
बेहतर होगा. एक दो ठोकरों के बाद सुधर जाना

पलते पलते फोड़ा नासूर हो जाता है एक दिन
पहले हमले पर ही अपनी औकात पे उतर जाना

मंदिरों का पता नहीं पर घर में है देव का वास
जब भी शुभ काम पे जाए माँ के पैर छूकर जाना

जीवन मूल्य इसके ठीक से खर्च होने में है ‘मधु’
सबका कर्ज अदा करके सुकून से तू ऊपर जाना

- M Choubey

ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला

ज़हानतों को कहाँ कर्ब से फ़रार मिला
जिसे निगाह मिली उसको इंतज़ार मिला

वो कोई राह का पत्थर हो या हसीं मंज़र
जहाँ से रास्ता ठहरा वहीं मज़ार मिला

कोई पुकार रहा था खुली फ़िज़ाओं से
नज़र उठाई तो चारो तरफ़ हिसार मिला

हर एक साँस न जाने थी जुस्तजू किसकी
हर एक दयार मुसाफ़िर को बेदयार मिला

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बनके इश्तहार मिला

-- अज्ञात..