Saturday, 26 July 2014

हम के ठहरे अज़नबी इतनी मदारातों के बाद

हम के ठहरे अज़नबी इतनी मदारातों के बाद
फिर बनेंगे आश़ना कितनी मुलाकातों के बाद

कब नज़र में आएगी बेदाग सब्ज़े की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद

हम के ठहरे अनबी इतनी मदारातों के बाद

दिल तो चाहा पर शिकश्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले-शिकवे भी कर लेते मुनाज़ातों के बाद

हम के ठहरे अनबी इतनी मदारातों के बाद

थे बहुत बेदर्द लम्हें खत्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थी बहुत बेमहर सुबहें, मेहरबां रातों के बाद

हम के ठहरे अनबी इतनी मदारातों के बाद

उनसे जो कहने गे थे फैज़ जाँ सदका किये
अनकही ही रह गयी वो बात सब बातों के बाद

हम के ठहरे अज़नबी इतनी मदारातों के बाद
फिर बनेंगे आश़ना कितनी मुलाकातों के बाद

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