Sunday, 20 July 2014

सब कुछ है पास में, फिर भी एक कमी रह गई

गम-ए-आरजू तेरी राह में, श़ब-ए-आरजू तेरी चाह में,
जो उज़ड़ गया वो बसा नहीं, जो बिछड़ग या वो मिला नहीं

सब कुछ है पास मेरे फिर भी एक कमी रह गई
मैं मुस्कुरा रहा था और आँखों में नमी रह गई

कभी तय ना कर सका के क्या रिश्ता है तेरा मेरा
तू अनमोल है मेरे लिए, मेरी ही कीमत लगी रह गई

हर बार तुझ से मिलकर बिछड़ने का डर क्यों
क्या यही जुदाई तकदीर में मेरे ही लिखी रह गई

बे-इख्त्यार उठे हैं मेरे कदम यहाँ वहां
मेरी मंजिल मेरी ही नज़रों से कहीं छिपी रह गई

ये कुछ पन्ने आ भी फूलों की तरह महकते हैं
तेरे नाम की सियाही इन पन्नों में जो बसी रह गई

चांद की जुदाई में आसमान भी जरूर तड़पता होगा
बात उसके दिल की, दिल में ही कहीं दबी रह गई

क्या बताउँ किसी को, कैसे समझाउँ किसी को
तू जाए तो मेरी नज़रें तुझे ही देखती रह गई

ख्वाहिश तुझे कभी अलविदा न कह पाएगा
ये कहते वक्त सांसे मेरी, जैसे रुकी रह गई

सब कुछ है पास में, फिर भी एक कमी रह गई

-- ख्वाहिश

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