Wednesday, 24 September 2014

छोड़ आया हूँ

जिन राहों में तूने बिछाए थे कांटे,
उन राहों में मैं फूल छोड़ आया हूँ.

जहाँ छोड़े थे तूने अपने कदमो के निशान,
उन राहों में अपना दिल छोड़ आया हूँ.

कभी जिस हवा ने उड़ाया था तेरा आँचल,
उन हवाओं का मैं रुख मोड़ आया हूँ.

जो ख्वाब रातों में आके तुझको डराते थे,
उन ख्वाबों को हकीकत से लड़ने छोड़ आया हूँ.

तेरी जो मुस्कान खो गयी थी लम्बे अरसे से,
बीते वक़्त में जाकर उसको ढूंढ आया हूँ.

जो यादें ज़ख्म बनकर दुखाती हो तडपती हो,
उन यादों को वर्तमान के समंदर में छोड़ आया हूँ.

मेरी खुश्क आँखों पर यूं शक न कर " बेताब"
अपने आंसू मैं अश्कों के समंदर मैं छोड़ आया हूँ,

----------बेताब--------------

Tuesday, 23 September 2014

सिर्फ रो देने से जिदंगी में गुजारा नहीं होता


सिर्फ रो देने से जिदंगी में गुजारा नहीं होता 
कोइ इतना भी मजबूरियों का मारा नहीं होता

हालात अक्सर बदलते रहते है इंसान के
खुदा के अलावा कोइ किसी का सहारा नहीं होता

दर्द-ओ-ग़म से कभी कुछ भी नहीं हासिल
हर कश्ती के तक़दीर में किनारा नहीं होता

मुसाफिर हूँ चलता रहता हूँ हर हाल में
ना रुकता कभी, अगर किसी ने पुकारा नहीं होता

मुझसे मेरी तन्हाइ ना छीनों तुम, खुदा के लिये
हर तन्हा रहने वाला इंसान आवारा नहीं होता

'ख्वाहिश' दिल में समुदंर की गहराई रखता है....
वो ख़ाक लिख पायेगा जो दर्द का मारा नहीं होता


-- ख्वाहिश

Saturday, 20 September 2014

कहानी ये है मेरे सोच में ईमान रहता है,

कहानी ये है मेरे सोच में ईमान रहता है,
नतीजा ये है मेरा घर सदा वीरान रहता है,

जहाँ सब लोग रहते है उसी बस्ती में रहता हूँ,
मगर कुछ इस तरह जैसे कोई अनजान रहता है.

जहाँ पर आदमी की हैसियत बँगले की साइज़ हो,
वहाँ पर कौन ये सोचे, कहाँ इन्सान रहता है.

मुसीबत सिर्फ़ इतनी है, वहाँ पर मैं नहीं जाता,
मुझे मालूम है भाई कहाँ भगवान रहता है.

निराला, सूर,तुलसी,भी हैं मेरे सोच में लेकिन,
इन्हीं के साथ ग़ालिब मीर का दीवान रहता है

किसी को क्या बचाएंगे, किसी से क्या निभाएंगे,
कि जिनके सोच में बस फ़ायदा नुकसान रहता है.

हमें भी चाहिए भाई, सड़क, बिजली, हवा, पानी,
मगर इन हुक्मरानों को कहाँ ये ध्यान रहता है.

- अशोक रावत

उसके बग़ैर ये शहर बड़ा गरीब लगता है

वो एक शख्स मुझे अपने क़रीब लगता है
खुद से करूँ जुदा तो अजीब लगता है

ये बेक़रारी, ये बेचैनी, ये कशिश कैसी
उसका मिलना मुझे अपना नसीब लगता है

कभी मीठी सी बातें, कभी हर बात पे झगड़े
ये याराना बड़ा दिलचस्प, बे-तरतीब लगता है

मोहब्बत की मंज़िल का पता न मिल सके फिर भी
कई सदियों का रिश्ता ये मेरे हबीब लगता है

उसके होने से जो सज जाती हैं महफ़िलें 'मीना'
उसके बग़ैर ये शहर बड़ा गरीब लगता है

-- 'मीना'

मत पूछ

कितनी मुश्किल से कटी कल की रात, मत पूछ
दिल से निकली हुई होठों में दबी बात, मत पूछ..

वक्त जो बदले तो इंसान बदल जाते हैं
क्या नहीं दिखलाते गर्दिश-ए-हालात, मत पूछ..

वो किसी का हो भी गया और मुझे खबर भी ना हुई
किस तरह उसने छुड़ाया है मुझसे हाथ, मत पूछ..

इस तरह पल में मुझे बेगाना कर दिया उसने
किस तरह अपनों से खाई है मैनें मात, मत पूछ..

अब तेरा प्यार नहीं है तो सनम कुछ भी नहीं
कितनी मुश्किल से बनी थी दिल की कायनात, मत पूछ..

-------अज्ञात

ये दिल कुछ और समझा था

वो जज्बों की तिजारत थी, ये दिल कुछ और समझा था
उसे हँसने की आदत थी, ये दिल कुछ और समझा था

मुझे उसने कहा, आओ नई दुनिया बसाते हैं 
उसे सुझी शरारत थी, ये दिल कुछ और समझा था

हमेशा उसकी आँखों में धनक के रंग होते थे 
ये उसकी आम आदत थी, ये दिल कुछ और समझा था

वो मेरे पास बैठी, देर तक ग़जलें सुनती 
उसे खुद से थी मोहब्बत, ये दिल कुछ और समझा था

मेरे कधें पर सिर रख कर कहीं पर खो जाती थी वो
ये एक वक्ती ईनायत थी, ये दिल कुछ और समझा था

मुझे वो देख कर अक्सर निगाहें फेर लेती थी
ये दर परदा हकारत थी, ये दिल कुछ और समझा था

-अज्ञात

Friday, 19 September 2014

फ़लक से चाँद तारे तोड़ लाऊं तो क्या बात हो

फ़लक से चाँद तारे तोड़ लाऊं तो क्या बात हो
तुम मुझे देख कर मुस्कुराओ तो क्या बात हो

ये बात मैनें कभी कही ही नहीं किसी से अब तलक
तुम ये बिना कहे ही समझ जाओ तो क्या बात हो

चाँद रात में भी घर मेरा रोशन नहीं होता
कभी तुम यहां से भी गुजर जाओ तो क्या बात हो

जमाने भर से छुप कर देखता हूँ तुम्हें मैं
तुम इस राज से खुद परदा हटाओ तो क्या बात हो

कभी तुमसे कह नहीं सका 'अब्रार' कि मोहब्बत है
तुम बस इस कलाम से समझ जाओ तो क्या बात हो

-----अब्रार-----

Sunday, 14 September 2014

उछलता जा

पगडंडियों को राजमार्ग में बदलता जा
पदचिह्न बनाने को दृढ़ता से चलता जा

जमाने की चोटें कुछ न बिगाड़ पायेंगी
वक्त की आग में इस्पात सा ढलता जा

ये अँधेरे अभी भाग जायेंगे दूम दबाकर 
तू प्रखर दीपशिखा बनकर सुलगता जा

तान सीना और कर आकाश मुट्ठी में 
बस माँ-बाप के क़दमों में झुकता जा 

देर करने पर मंजिल रूठ जाती है ‘मधु’
बैठ मत, उठ, दौड़ता और उछलता जा 

- Dr. Madhusudan Choubey

Saturday, 13 September 2014

खा जाये अगर सब्र को हालात तो फिर क्या होगा

खा जाये अगर सब्र को हालात तो फिर क्या होगा?
ना समझ सके गर कोई दिल के जज्बात तो फिर क्या होगा?

दोस्ती हो जाये तूफानों से और हाथ ना आये किनारे तो गम नहीं,
पर अगर तूफान भी ना निभा सके अपना साथ तो फिर क्या होगा?

अच्छा ही है कि दोनों की राहें अलग-अलग हैं..
पर किसी मोड़ पर फिर हो जाये उनसे मुलाकात तो फिर क्या होगा?

हर नई सुबह मुसाफिर के लिये नई उम्मीदें ले आती है पर...
अगर खत्म ना हो वो दर्द की काली रात तो फिर क्या होगा?

हाथ थाम कर युँ ही साथ चलो हमारे तो ये सफर मुकम्मल हो
पर जहां हो सवालात ही सवालात तो फिर क्या होगा?

'ख्वाहिश' वैसे तो तन्हा रह कर भी कभी तन्हा नहीं पर...
भरी महफिल में अगर हो अश्कों की बरसात तो फिर क्या होगा?

-ख्वाहिश

चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

बस ये हसरत है कि दामन की हवा दो मुझको
फिर अगर चाहो मिटाना तो मिटा दो मुझको

शमअ की तरहां मैरे पहलु में पिघलो तो सही
अपनी क़ुर्बत की तपिश देके ही जला दो मुझको

ख़त्म क़िस्सा ये करो या तो मेरी जाँ लेकर
राह जीने की नई या के बता दो मुझको

टूट जाये ये मेरी तुम से सभी उम्मीदें
आज मौक़ा है चलो कोई दग़ा दो मुझको

ज़ख़्म सब भरने लगे जीना हुआ मुश्किल सा
करके ईजाद सितम कोई नया दो मुझको

तुमसे वाबस्ता अगर ग़म है मुझे प्यारे हैं
कब कहा मैंने मसर्रत की दुआ दो मुझको

तुमसे करता तो है इज़हारे तमन्ना बिस्मिल
देखो ऐसा न हो नज़रों से गिरा दो मुझको

अय्यूब ख़ान "बिस्मिल

टूट जाता है

हल्के से झटके में भरभराकर टूट जाता है 
कांच का पुतला है टकराकर टूट जाता है

यूँ तो अडिग रहता है जमाने के तूफानों में 
अपनों की ठेस से लहराकर टूट जाता है

प्रतिमा पर अर्पित करता है मन का नैवेध्य 
आशीष न मिले तो उकताकर टूट जाता है

कहाँ पीछे हटा वो जिंदगी की जंग से पर 
आस्तीन के सांप से घबराकर टूट जाता है

जब भी लोग हंसे तब तब हौंसला बढ़ा ‘मधु’
वक्त करे मजाक तो मुस्कुराकर टूट जाता है

- Dr. Madhusudan Choubey

खुद को ही खुद से जुदा कर गये,

खुद को ही खुद से जुदा कर गये,
इस कदर हम किसी से वफा कर गये.

उम्मीद थी जिन से जिदंगी की मुझे,
वो ही मेरी हस्ती को फना कर गये.

मैंने उसे चाहा उस से कुछ नहीं,
फिर ना जाने क्यों वो दगा कर गये.

ना मेरा प्यार कम हुआ ना उस की नफरत,
अपना अपना फर्ज था दोनों अदा कर गये.

सजा मिली दिल लगाने की तो एहसास हुआ,
मुहब्बत की कैसी हम खता कर गये.

-- Unknown