Saturday, 20 September 2014

ये दिल कुछ और समझा था

वो जज्बों की तिजारत थी, ये दिल कुछ और समझा था
उसे हँसने की आदत थी, ये दिल कुछ और समझा था

मुझे उसने कहा, आओ नई दुनिया बसाते हैं 
उसे सुझी शरारत थी, ये दिल कुछ और समझा था

हमेशा उसकी आँखों में धनक के रंग होते थे 
ये उसकी आम आदत थी, ये दिल कुछ और समझा था

वो मेरे पास बैठी, देर तक ग़जलें सुनती 
उसे खुद से थी मोहब्बत, ये दिल कुछ और समझा था

मेरे कधें पर सिर रख कर कहीं पर खो जाती थी वो
ये एक वक्ती ईनायत थी, ये दिल कुछ और समझा था

मुझे वो देख कर अक्सर निगाहें फेर लेती थी
ये दर परदा हकारत थी, ये दिल कुछ और समझा था

-अज्ञात

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