Saturday, 13 September 2014

टूट जाता है

हल्के से झटके में भरभराकर टूट जाता है 
कांच का पुतला है टकराकर टूट जाता है

यूँ तो अडिग रहता है जमाने के तूफानों में 
अपनों की ठेस से लहराकर टूट जाता है

प्रतिमा पर अर्पित करता है मन का नैवेध्य 
आशीष न मिले तो उकताकर टूट जाता है

कहाँ पीछे हटा वो जिंदगी की जंग से पर 
आस्तीन के सांप से घबराकर टूट जाता है

जब भी लोग हंसे तब तब हौंसला बढ़ा ‘मधु’
वक्त करे मजाक तो मुस्कुराकर टूट जाता है

- Dr. Madhusudan Choubey

No comments:

Post a Comment