पगडंडियों को राजमार्ग में बदलता जा
पदचिह्न बनाने को दृढ़ता से चलता जा
जमाने की चोटें कुछ न बिगाड़ पायेंगी
वक्त की आग में इस्पात सा ढलता जा
ये अँधेरे अभी भाग जायेंगे दूम दबाकर
तू प्रखर दीपशिखा बनकर सुलगता जा
तान सीना और कर आकाश मुट्ठी में
बस माँ-बाप के क़दमों में झुकता जा
देर करने पर मंजिल रूठ जाती है ‘मधु’
बैठ मत, उठ, दौड़ता और उछलता जा
- Dr. Madhusudan Choubey
पदचिह्न बनाने को दृढ़ता से चलता जा
जमाने की चोटें कुछ न बिगाड़ पायेंगी
वक्त की आग में इस्पात सा ढलता जा
ये अँधेरे अभी भाग जायेंगे दूम दबाकर
तू प्रखर दीपशिखा बनकर सुलगता जा
तान सीना और कर आकाश मुट्ठी में
बस माँ-बाप के क़दमों में झुकता जा
देर करने पर मंजिल रूठ जाती है ‘मधु’
बैठ मत, उठ, दौड़ता और उछलता जा
- Dr. Madhusudan Choubey
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