Saturday, 13 September 2014

खा जाये अगर सब्र को हालात तो फिर क्या होगा

खा जाये अगर सब्र को हालात तो फिर क्या होगा?
ना समझ सके गर कोई दिल के जज्बात तो फिर क्या होगा?

दोस्ती हो जाये तूफानों से और हाथ ना आये किनारे तो गम नहीं,
पर अगर तूफान भी ना निभा सके अपना साथ तो फिर क्या होगा?

अच्छा ही है कि दोनों की राहें अलग-अलग हैं..
पर किसी मोड़ पर फिर हो जाये उनसे मुलाकात तो फिर क्या होगा?

हर नई सुबह मुसाफिर के लिये नई उम्मीदें ले आती है पर...
अगर खत्म ना हो वो दर्द की काली रात तो फिर क्या होगा?

हाथ थाम कर युँ ही साथ चलो हमारे तो ये सफर मुकम्मल हो
पर जहां हो सवालात ही सवालात तो फिर क्या होगा?

'ख्वाहिश' वैसे तो तन्हा रह कर भी कभी तन्हा नहीं पर...
भरी महफिल में अगर हो अश्कों की बरसात तो फिर क्या होगा?

-ख्वाहिश

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