Friday, 19 September 2014

फ़लक से चाँद तारे तोड़ लाऊं तो क्या बात हो

फ़लक से चाँद तारे तोड़ लाऊं तो क्या बात हो
तुम मुझे देख कर मुस्कुराओ तो क्या बात हो

ये बात मैनें कभी कही ही नहीं किसी से अब तलक
तुम ये बिना कहे ही समझ जाओ तो क्या बात हो

चाँद रात में भी घर मेरा रोशन नहीं होता
कभी तुम यहां से भी गुजर जाओ तो क्या बात हो

जमाने भर से छुप कर देखता हूँ तुम्हें मैं
तुम इस राज से खुद परदा हटाओ तो क्या बात हो

कभी तुमसे कह नहीं सका 'अब्रार' कि मोहब्बत है
तुम बस इस कलाम से समझ जाओ तो क्या बात हो

-----अब्रार-----

No comments:

Post a Comment