Saturday, 20 September 2014

कहानी ये है मेरे सोच में ईमान रहता है,

कहानी ये है मेरे सोच में ईमान रहता है,
नतीजा ये है मेरा घर सदा वीरान रहता है,

जहाँ सब लोग रहते है उसी बस्ती में रहता हूँ,
मगर कुछ इस तरह जैसे कोई अनजान रहता है.

जहाँ पर आदमी की हैसियत बँगले की साइज़ हो,
वहाँ पर कौन ये सोचे, कहाँ इन्सान रहता है.

मुसीबत सिर्फ़ इतनी है, वहाँ पर मैं नहीं जाता,
मुझे मालूम है भाई कहाँ भगवान रहता है.

निराला, सूर,तुलसी,भी हैं मेरे सोच में लेकिन,
इन्हीं के साथ ग़ालिब मीर का दीवान रहता है

किसी को क्या बचाएंगे, किसी से क्या निभाएंगे,
कि जिनके सोच में बस फ़ायदा नुकसान रहता है.

हमें भी चाहिए भाई, सड़क, बिजली, हवा, पानी,
मगर इन हुक्मरानों को कहाँ ये ध्यान रहता है.

- अशोक रावत

No comments:

Post a Comment