Friday, 2 August 2013

तुमने तोड़ दिया रिश्ता ,कुछ तो ज़ोर पड़ा होगा

तुमने तोड़ दिया रिश्ता ,कुछ तो ज़ोर पड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था, वो इक ओर खड़ा होगा

... पहली बार मिलीं जब तुम, तुम कितना सकुचाईं थीं
होंठों पर कम्पन भी था, तुम थोडा घबराईं थीं
वो पहला पल यादों में, अब भी कहीं जड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था,वो इक ओर खड़ा होगा

जाने कैसा जादू था, जाने क्या आकर्षण था
जब तुम मेरे सम्मुख थीं ,स्वर्णिम -स्वर्णिम हर क्षण था
सुरभित -सुरभित वो हर क्षण, अब भी कहीं पड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था, वो इक ओर खड़ा होगा

ख़ुशबू का झोंका तुमसे, ,आकर कुछ कहता होगा
चित्र हमारा आँखों में, अक्सर ही रहता होगा
जब सोचा होगा हमको, मन कमज़ोर पड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था, वो इक ओर खड़ा होगा

जब भी मिलते थे तुमसे ,मन की बातें करते थे
जब तुम खुलकर हँसतीं थीं, कितने रंग उभरते थे
सोच न पाईं तुम शायद ,तुम बिन वक़्त कड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था, वो इक ओर खड़ा होगा

तुमने जाने क्या सोचा ,तुमने जाने क्या समझा
हम धागे से टूट गए, अलग किया तुमने रस्ता
ज्यूँ हममें आया पतझर, ,यूँ हर पात झड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था वो इक ओर खड़ा होगा

तुम बिन भी दिन बीतेंगे,मर - मर कर हम जी लेंगे
ज़हर अगर पीना है तो, हम उसको भी पी लेंगे
इतना तो तय है तुम बिन ,हर दुःख और बड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था, वो इक ओर खड़ा होगा

तुमने तोड़ दिया रिश्ता ,कुछ तो ज़ोर पड़ा होगा
जो मौसम हम तुम में था, वो इक ओर खड़ा होगा

- -नित्यानंद `तुषार`

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