कभी तन्हाई में उनसे.... मेरी मुलाक़ात तो हो....
साथ बैठें पल दो पल... कुछ ऐसी बात तो हो....
रोज़ वो आतें हैं चल कर .....टहलने मेरे ख़्वाबों में..
जायें न आके फ़िर कहीं... कोई ऐसी रात तो हो...
जानतें वो नहीं हैं शायद...कि दिल में अक्स है उनका...
तड़पे वो भी मेरी ख़ातिर... ऐसे ज़ज्बात तो हो..
ज़िंदगी की तल्खियां छोड़.. महीने में हम सावन के.....
साथ भीगें कभी पहरों .... ऐसी बरसात तो हो...
सफ़र तन्हा और राहें ....भरीं हैं गम के तूफां से....
बचाए जो थपेड़ों से ... वो मेरे साथ तो हो...
---- तरुणा मिश्रा...
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