Tuesday, 20 August 2013

कोई दोस्त है न रकीब है,

कोई दोस्त है न रकीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है.
 .
वह जो इश्क था वह जूनून था,
ये जो हिज्र है ये नसीब है.
.
यहाँ किसका चेहरा पढ़ करूं,  
यहाँ कौन इतना करीब है.
.
मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,  
यहाँ सब के सर पे सलीब है.

http://youtu.be/Dl88aEa59-A

No comments:

Post a Comment