Wednesday, 31 July 2013

मन रे तू काहे न धीर धरे

Man Re tu Kahe na Dheer Dhare..

मन रे तू काहे न धीर धरे
वो निर्मोही मोह न जानें
जिनका मोह करें
मन रे तू काहे न धीर धरे

इस जीवन की..  चढ़ती-ढलती धूप को किसने बाँधा
रंग पे किसने पहरे डाले...रूप को किसने बाँधा
काहे ये जतन करे
मन रे तू काहे न धीर धरे

उतना ही उपकार समझ कोई...जितना साथ निभा दे
जनम-मरण का मेल है सपना...ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे न धीर धरे

http://youtu.be/uA2FhgF6VY4 

No comments:

Post a Comment