Man Re tu Kahe na Dheer Dhare..
मन रे तू काहे न धीर धरे
वो निर्मोही मोह न जानें
जिनका मोह करें
मन रे तू काहे न धीर धरे
इस जीवन की.. चढ़ती-ढलती धूप को किसने बाँधा
रंग पे किसने पहरे डाले...रूप को किसने बाँधा
काहे ये जतन करे
मन रे तू काहे न धीर धरे
उतना ही उपकार समझ कोई...जितना साथ निभा दे
जनम-मरण का मेल है सपना...ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे न धीर धरे
http://youtu.be/uA2FhgF6VY4
मन रे तू काहे न धीर धरे
वो निर्मोही मोह न जानें
जिनका मोह करें
मन रे तू काहे न धीर धरे
इस जीवन की.. चढ़ती-ढलती धूप को किसने बाँधा
रंग पे किसने पहरे डाले...रूप को किसने बाँधा
काहे ये जतन करे
मन रे तू काहे न धीर धरे
उतना ही उपकार समझ कोई...जितना साथ निभा दे
जनम-मरण का मेल है सपना...ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे न धीर धरे
http://youtu.be/uA2FhgF6VY4
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