Monday, 29 December 2014

बरसती नहीं आँखें मगर दिल उदास तो है

उस शख्स को मेरा हल्का सा एहसास तो है
बे-दर्द सही वो मेरा हमराज तो है

वो आये ना आये मेरे पास लेकिन
शिद्दत से मुझे उसका इंतजार तो है

अभी नहीं तो क्या हुआ मिल ही जायेंगे कभी
मेरे दिल में उस से मिलने की आस तो है

प्यार की गवाही मेरे आसूँओं से ना माँग
बरसती नहीं आँखें मगर दिल उदास तो है

-अज्ञात

Sunday, 28 December 2014

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना हैं आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खाकसारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं

इस साल का यह एक सलाम आखरी है

इस साल का यह एक सलाम आखरी है
दिल से निकली जो यह एक कलाम आखरी है

फिर नया साल होगा, नई-नई बातें होंगी
एहसासों में डूबा हुआ यह पयाम आखरी है

हर ख्वाब, हर ख्याल में तेरा ही ज़िक्र है
मेरे लबों पर जो आये तेरा नाम आखरी है

रो देने से बदलती नहीं तक़दीरें 'जनाब'
मत सोच ज़िन्दगी का यह मुकाम आखरी है

ना रोको हमें आज, बहकने दो कुछ पल के लिए
होंटों तक आये चल कर जो यह जाम आखरी है

"ख्वाहिश" के लफ़्ज़ों में हैं ज़िन्दगी की महक
इस बज़्म में मेरे ग़ज़ल की यह शाम आखरी है

~~~~~ख्वाहिश~~~~~~~~

Saturday, 27 December 2014

सह सकता है आदमी

हजार हजार साल जिन्दा रह सकता है आदमी
अपने कर्म से अपनी कथा कह सकता है आदमी

आसान रास्ते अमरत्व की ओर कभी नहीं जाते हैं
चाहे तो उल्टी दिशा में भी बह सकता है आदमी

हारे हुए तूफ़ान-जलजले ने कहा एक दुसरे से यूँ
हर प्रहार अपने सीने पर सह सकता है आदमी

पहाड़ से भी अटल है उसे डगमगाना मुश्किल है
बस केवल अपने डिगाए ही ढह सकता है आदमी

जुबाँ से नहीं बयां होगी ये अमर दास्तान ‘मधु’
पसीने और पैर के छालों से कह सकता है आदमी

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Friday, 26 December 2014

वक्त इंसान को थकाता भी है तपाता भी है

वक्त इंसान को थकाता भी है तपाता भी है
बड़े गहरे जख्म देकर उन्हें भर जाता भी है

कभी महरूम रखता है दाल रोटी से वक्त
तो कभी बंदे को बुलंदी पर पहुंचाता भी है

आज मिली हार, मार जलालत हद से ज्यादा
कल मस्तक पर केसर तिलक लगाता भी है

माँ की गोद और लोरी से देता है मीठी नींद
फिर माँ को छीनकर बरसों जगाता भी है

देता है ठोकरों से घुटनों और मुंह पे चोट
यही धूल से उठाकर गले लगाता भी है

जिसका वक्त सध जाए उसके क्या कहने
वह मिट्टी को छूकर सोना बनाता भी है

जन्म से मौत तक कई मोड़ आते हैं ‘मधु’
औकात देकर वक्त औकात बताता भी है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Tuesday, 23 December 2014

सब के साथ रह कर भी, मैं तन्हा रहा बहुत

ना जाने क्यूँ इस शहर में ये चर्चा रहा बहुत
सब के साथ रह कर भी, मैं तन्हा रहा बहुत

हमेशा सच कहने की आदत ने मुझे बुरा बना दिया
झूठ की दुनिया में सच हर एक को चुभता रहा बहुत

मुद्दतें गुजर गइ उसने मेरा हाल तक ना पुछा
एक मैं था उसके हक़ में नजमें लिखता रहा बहुत

बदलते हुए हालात अक्सर इंसान को जीना सीखा देते हैं
एक वक्त था जब अपने साये से भी मैं डरता रहा बहुत

मेरी कहानी का ये एक हिस्सा, मैनें आज तक सबसे छुपाया है
बुरे दौर में जहां मरना आसान था, वहां मैं जीता रहा बहुत

इंसान की खूबियाँ आज धन-दौलत, शोहरत से नापी जाती है
सच कहूँ तो मेरे भी गिर्द ये एक तमाशा रहा बहुत

'ख्वाहिश' कीमत उन अश्कों की हैं जो आँखों से बहते नहीं..
रोना आसान है, इंसान वही है जो हर हाल में हंसता रहा बहुत

- ख्वाहिश

Monday, 22 December 2014

किसी के दर्द का जब तक कोई हिस्सा नहीं बनता

किसी के दर्द का जब तक कोई हिस्सा नहीं बनता,
कभी विश्वास का तब तक कहीं रिशता नहीं बनता.

वो बादल क्यों न बन जाए, वो बारिश क्यों न हो जाए,
समंदर का रुका पानी मगर दरिया नहीं बनता.

अगर इंसान के दिल भी दरख़्तों की तरह होते,
परिंदों के लिए शायद कोई पिजरा नहीं बनता.

चमक तो एक दिन पत्थर में आ जाती है घिसने से,
मगर इस इल्म से पत्थर कभी शीशा नहीं बनता.

किसी तरतीव से ही शक्ल मिलती है लकीरों को,
लक़ीरें खींच देने से कोई नक़्शा नहीं बनता.

अगर संकल्प मन में हो तो जंगल क्या है दलदल क्या,
बिना संकल्प के कोई नया रस्ता नहीं बनता.

- अशोक रावत

Friday, 19 December 2014

हालात से हार मान जायें ऐसी उम्र-ए-जवानी तो नहीं

खिलखिलाती मुस्कुराहट के पीछे ग़म की कहानी तो नहीं
हालात से हार मान जायें ऐसी उम्र-ए-जवानी तो नहीं

दिल लाख अकेला ही सही इस दुनिया की भीड़ में
पर जिदंगी को ही गंवा देना ये जिदंगानी तो नहीं

जिंदा तो हैं हम सब पर जीस्त की कोई लज्जत नहीं
जिदंगी को जियो, आत्म-हत्या कायरता की निशानी तो नहीं

दिल में सवालों का बोझ हो तो पूछ कर हलका करो इस दिल को
दिल में सब रख कर जीना, यूं जीने में कोई आसानी तो नहीं

ऐ खुदा मेरी दुआ है सबको महफूज रखो किसी भी सितम से
जिदंगी तेरी देन है, 'ख्वाहिश' तुझसे कोई बात मुझे छुपानी तो नहीं

ख्वाहिश

Thursday, 18 December 2014

वो खफा हैं हमसे तो खफा ही रहने दो

वो खफा हैं हमसे तो खफा ही रहने दो
हमको उनको गुनाहगार ही रहने दो

वो समझते है कि हमने छोड़ दिया है उनको
बात तो झूठ है मगर सच ही रहने दो

मुद्दतों मांगी है खुदा से खुशियां उनकी
जो आता है इल्ज़ाम हम पे तो इल्ज़ाम ही रहने दो

उनकी शर्त है कि मैं बेवफा बनूं
अगर खुशी मिले उनको तो मुझे बेवफ़ा ही रहने दो

आयेगा वक्त तो दिखायेगें उनको अपने जख्म
अभी खामोश है हम तो खामोश ही रहने दो


-अज्ञात

बंदे को वह मिलता ही है, जिसका वो हकदार होता है

बंदे को वह मिलता ही है, जिसका वो हकदार होता है
देने के लिए मौला को सही वक्त का इन्तजार होता है

किसी के हिस्से मुफलिसी, किसी के हिस्से में ठाठ है
मौला मुंसिफ है बड़ा, वो न्याय का तरफदार होता है

अपनी करतूतों को याद कर पहले फिर कोस खुदा को
अपील में पलटता नहीं, उसका फैसला दमदार होता है

खुशी से ज्यादा आंसुओं में छिपे हैं बुलंदियों के पते
ये उनके नसीब में हैं, जिनसे मौला को प्यार होता है

एक ही मिट्टी से बनाता है वो न जाने कितने वजूद
कोई ‘मधु’ सा मामूली, कोई अन्ना सा खुद्दार होता है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Monday, 15 December 2014

वो दर्द दिल में है जिसकी दवा नहीं मालूम

मिला है क्या मुझे इसके सिवा नहीं मालूम
वो दर्द दिल में है जिसकी दवा नहीं मालूम

फरेब दे के मुझे मँजिलों पे जा पहुँचे
जो कह रहे थे हमें रास्ता नहीं मालूम

हर एक शख्स से मैं बेझिझक मिलूँ कैसे
तुम्हारे शहर की आबो हवा नहीं मालूम

मैं अपनी प्यास के सहरा में मुतमइन था मुझे
कहाँ बरस के गयी है घटा नहीं मालूम

खुदा मुआफ़ रखे उसको इस खता के लिये
उसे वफ़ा का अभी मर्तबा नहीं मालूम

यक़ीन उस पे किये जा रहा हूँ मैं 'शायर'
वो कब कहाँ मुझे देगा दगा नहीं मालूम

शायर देहलवी

Sunday, 14 December 2014

मैं तेरे सांचे में बिल्कुल ढलना नहीं चाहता

मैं तेरे सांचे में बिल्कुल ढलना नहीं चाहता
तू जैसा है अच्छा है तुझे बदलना नहीं चाहता

तू तू रहे, मैं मैं रहूँ और हम दोनों हम जो जाएँ
तुझे मिटाकर मैं जहां में बचना नहीं चाहता

आदमी हूँ इसलिए जुदा हूँ मैं कठपुतलियों से
उँगलियों के इशारों पर मैं चलना नहीं चाहता

तू मुझे प्रिय है, मैं भी तेरी धड़कनों में बसा हूँ
तेरी खुश्बुएं मिटाकर मैं महकना नहीं चाहता

अनंत आकाश है जहाँ तक उड़ सके उड़ 'मधु'
आज़ाद परिंदे मैं तेरे पर कतरना नहीं चाहता

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Friday, 12 December 2014

दो राहें अलग हो जाने से कभी कोई जुदा नहीं होता

आज दिल बहुत बेचैन है मुनसीब समझो तो
बस इतना बता दो.....कही तुम उदास तो नहीं...!!
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जैसे के सिर्फ सर को झुका देना कभी सजदा नहीं होता
वैसे ही दो राहें अलग हो जाने से कभी कोई जुदा नहीं होता

किसी रंग-रूप में, कभी छाउ-धुप में बदल ही जाते हैं सब
सच कहते हैं लोग, "हालात बुरे होते हैं आदमी बुरा नहीं होता"

एक-एक लफ्ज़ सलीके से किताब-ए-दिल में उतारता हूँ मैं
कभी पूछो किसी शायर से,क्या-क्या उस के दिल मे छुपा नहीं होता

जहां जहां इंसान जाता है उस के हिस्से की वीरानी भी साथ जाती हैं
दुनिया की भीड़ में बहुत लोग मिलते हैँ पर हर कोई अपना नहीं होता

तुझसे मिलने की ख़ुशी फिर जुदा होने का मलाल साथ लिए चलता हूँ
सूना है दिल में गीले-शिकवे रख कर बिछड़ना कभी अच्छा नहीं होता

चेहरे से जो ज़ाहिर हो वो तो दुनिया भी जान जाती हैँ 'साहेब'........!!!!!
दिल के अंदर भी झाँक कर जो देखे,"ख्वाहिश" ऐसा कोई आइना नही होता

~~~~~ख्वाहिश~~~~~~~

Wednesday, 10 December 2014

चींखों को दबाया है

कुछ इसने कुछ उसने बखूबी रूलाया है
माँ की लोरियों ने बमुश्किल सुलाया है

गालों पर बनी हैं आंसुओं की पगडंडियां
इतिहास से पूछो ये कब मुस्कुराया है

आँखों में नहीं सजते रंगीन ख्वाब अब
कई वर्षों से आंसुओं ने घर बसाया है

फितुरी ज़माने ने जाने कैसे सुन लिया
मैंने तो हर संभव चींखों को दबाया है

दिल की बातें यहाँ कौन सुनता है ‘मधु’
झूठ ने सच को हर कदम पे हराया है


-डॉ. मधुसूदन चौबे 

Monday, 8 December 2014

तू कहीं अजनबी न हो जाए

डर है जिसका वही न हो जाए
तू कहीं अजनबी न हो जाए

दर्द औरों का गर समझने लगे
आदमी आदमी न हो जाए

चन्द ख़ुशियों से आशना हूँ मैं
रंज को आगही न हो जाए

मैं यही सोच कर हूँ चुप अब तक
बेसबब दुश्मनी न हो जाए

मौत के वक़्त देख कर उनको
ख़्वाहिशे ज़िन्दगी न हो जाए

शेर मेरे हैं जुगनुओं की तरह
बज्म़ में रौशनी न हो जाए

तुम भी लहज़ा बदल के बात करो
'शायर' ऐसा कभी न हो जाए

शायर देहलवी

असलियत को झुठलाने निकले

असलियत को झुठलाने निकले
काग़ज़ के फूल महकाने निकले

सूफ़ी निकले जोगी निकले जो भी निकले
सब ख़ुदको बहकाने निकले

मन में, बूढ़ी इमारतें दबी निकलीं
तैखानों में तैखाने निकले

गाँव से उस दिन शहर तो आ गये
पैर जमाने में ज़माने निकले

हम असलियत को झुठलाने निकले,,,

- शोमेश शुक्ला

Thursday, 4 December 2014

उजाले और उजाले के बीच अँधेरा आता है

उजाले और उजाले के बीच अँधेरा आता है
मंजिल की राहों .में कोहरा घनेरा आता है

असफलता लाती है अवसाद की सुनामियाँ
सपनीली आँखों के नीचे काला घेरा आता है

लक्ष्मण पर भी चल जाती है आसूरी शक्ति
जब कभी विपरीत वक्त का फेरा आता है

तभी चलता है नींव की मजबूती का पता
जलजले की जद में जब कोई बसेरा आता है

सुन, डूबा हुआ सूर्य फिर निकलता है ‘मधु’
काली रात के बाद चमकीला सबेरा आता है

-डॉ. मधुसूदन चौबे

Tuesday, 2 December 2014

दिल में हमेशा ज़िन्दा एक ख्वाब रखियेगा

दिल में हमेशा ज़िन्दा एक ख्वाब रखियेगा
चाहे कुछ भी हो उम्मीदों का सैलाब रखियेगा

आसमां को छू लेना एक दिन पर अभी वक्त है
पाँव जमीन पे रखना, खर्चों का हिसाब रखियेगा

तेरी खुशियों में दुनिया तेरा साथ देगी
मुश्किलों में अपनी सोच को लाजवाब रखियेगा

गमगीन चेहरे अपने पहचान खो देते हैं
जो पहचाने जाओ, खुद में ऐसी एक ताब रखियेगा

किसी रोते को गर तुम चुप करा सको तो ज़रूर करो
अपने दिल में इन्सानियत का जज़्बा बेहिसाब रखियेगा

तन्हा राहों में भी खुद को तन्हा न समझ
ख्वाहिश ऐसी सोच रख, खुद को कामयाब रखियेगा।

--- ख्वाहिश 

Monday, 1 December 2014

हर गम से मुस्कुराने का हौंसला मिलता है

हर गम से मुस्कुराने का हौंसला मिलता है
ये तो दिल है जो गिरता है तो कभी संभलता है

जलते दिल की रोशनी में ढूंढ लो मंजिल का पता
उस चिराग को देखो जो बड़े शौक से जलता है

इस दर्द भरी दुनिया में खुद को पत्थर बना डालो
वैसा दिल ना रखो जो मोहब्बत में पिघलता है

तुम समझ लेना उम्मीदों की शहनाई उसे
आह जब जब तुम्हारे दिल से निकलता है

किसी की याद सताये तो शाम का दिल देखो
जो अपनी सुबह के लिये कइ रंग बदलता है

जिंदगी चीज है जीने की जी लेते हैं 'दोस्तों'
लाख रोशनी हो मगर ये दिल कहां बहलता है?

-अज्ञात