बंदे को वह मिलता ही है, जिसका वो हकदार होता है
देने के लिए मौला को सही वक्त का इन्तजार होता है
किसी के हिस्से मुफलिसी, किसी के हिस्से में ठाठ है
मौला मुंसिफ है बड़ा, वो न्याय का तरफदार होता है
अपनी करतूतों को याद कर पहले फिर कोस खुदा को
अपील में पलटता नहीं, उसका फैसला दमदार होता है
खुशी से ज्यादा आंसुओं में छिपे हैं बुलंदियों के पते
ये उनके नसीब में हैं, जिनसे मौला को प्यार होता है
एक ही मिट्टी से बनाता है वो न जाने कितने वजूद
कोई ‘मधु’ सा मामूली, कोई अन्ना सा खुद्दार होता है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
देने के लिए मौला को सही वक्त का इन्तजार होता है
किसी के हिस्से मुफलिसी, किसी के हिस्से में ठाठ है
मौला मुंसिफ है बड़ा, वो न्याय का तरफदार होता है
अपनी करतूतों को याद कर पहले फिर कोस खुदा को
अपील में पलटता नहीं, उसका फैसला दमदार होता है
खुशी से ज्यादा आंसुओं में छिपे हैं बुलंदियों के पते
ये उनके नसीब में हैं, जिनसे मौला को प्यार होता है
एक ही मिट्टी से बनाता है वो न जाने कितने वजूद
कोई ‘मधु’ सा मामूली, कोई अन्ना सा खुद्दार होता है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
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