Saturday, 27 December 2014

सह सकता है आदमी

हजार हजार साल जिन्दा रह सकता है आदमी
अपने कर्म से अपनी कथा कह सकता है आदमी

आसान रास्ते अमरत्व की ओर कभी नहीं जाते हैं
चाहे तो उल्टी दिशा में भी बह सकता है आदमी

हारे हुए तूफ़ान-जलजले ने कहा एक दुसरे से यूँ
हर प्रहार अपने सीने पर सह सकता है आदमी

पहाड़ से भी अटल है उसे डगमगाना मुश्किल है
बस केवल अपने डिगाए ही ढह सकता है आदमी

जुबाँ से नहीं बयां होगी ये अमर दास्तान ‘मधु’
पसीने और पैर के छालों से कह सकता है आदमी

-डॉ. मधुसूदन चौबे

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