मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना हैं आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खाकसारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
सुना हैं आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खाकसारों को बड़ी तकलीफ़ होतीं हैं
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