वक्त इंसान को थकाता भी है तपाता भी है
बड़े गहरे जख्म देकर उन्हें भर जाता भी है
कभी महरूम रखता है दाल रोटी से वक्त
तो कभी बंदे को बुलंदी पर पहुंचाता भी है
आज मिली हार, मार जलालत हद से ज्यादा
कल मस्तक पर केसर तिलक लगाता भी है
माँ की गोद और लोरी से देता है मीठी नींद
फिर माँ को छीनकर बरसों जगाता भी है
देता है ठोकरों से घुटनों और मुंह पे चोट
यही धूल से उठाकर गले लगाता भी है
जिसका वक्त सध जाए उसके क्या कहने
वह मिट्टी को छूकर सोना बनाता भी है
जन्म से मौत तक कई मोड़ आते हैं ‘मधु’
औकात देकर वक्त औकात बताता भी है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
बड़े गहरे जख्म देकर उन्हें भर जाता भी है
कभी महरूम रखता है दाल रोटी से वक्त
तो कभी बंदे को बुलंदी पर पहुंचाता भी है
आज मिली हार, मार जलालत हद से ज्यादा
कल मस्तक पर केसर तिलक लगाता भी है
माँ की गोद और लोरी से देता है मीठी नींद
फिर माँ को छीनकर बरसों जगाता भी है
देता है ठोकरों से घुटनों और मुंह पे चोट
यही धूल से उठाकर गले लगाता भी है
जिसका वक्त सध जाए उसके क्या कहने
वह मिट्टी को छूकर सोना बनाता भी है
जन्म से मौत तक कई मोड़ आते हैं ‘मधु’
औकात देकर वक्त औकात बताता भी है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
No comments:
Post a Comment