Monday, 15 December 2014

वो दर्द दिल में है जिसकी दवा नहीं मालूम

मिला है क्या मुझे इसके सिवा नहीं मालूम
वो दर्द दिल में है जिसकी दवा नहीं मालूम

फरेब दे के मुझे मँजिलों पे जा पहुँचे
जो कह रहे थे हमें रास्ता नहीं मालूम

हर एक शख्स से मैं बेझिझक मिलूँ कैसे
तुम्हारे शहर की आबो हवा नहीं मालूम

मैं अपनी प्यास के सहरा में मुतमइन था मुझे
कहाँ बरस के गयी है घटा नहीं मालूम

खुदा मुआफ़ रखे उसको इस खता के लिये
उसे वफ़ा का अभी मर्तबा नहीं मालूम

यक़ीन उस पे किये जा रहा हूँ मैं 'शायर'
वो कब कहाँ मुझे देगा दगा नहीं मालूम

शायर देहलवी

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