असलियत को झुठलाने निकले
काग़ज़ के फूल महकाने निकले
सूफ़ी निकले जोगी निकले जो भी निकले
सब ख़ुदको बहकाने निकले
मन में, बूढ़ी इमारतें दबी निकलीं
तैखानों में तैखाने निकले
गाँव से उस दिन शहर तो आ गये
पैर जमाने में ज़माने निकले
हम असलियत को झुठलाने निकले,,,
- शोमेश शुक्ला
काग़ज़ के फूल महकाने निकले
सूफ़ी निकले जोगी निकले जो भी निकले
सब ख़ुदको बहकाने निकले
मन में, बूढ़ी इमारतें दबी निकलीं
तैखानों में तैखाने निकले
गाँव से उस दिन शहर तो आ गये
पैर जमाने में ज़माने निकले
हम असलियत को झुठलाने निकले,,,
- शोमेश शुक्ला
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