कुछ इसने कुछ उसने बखूबी रूलाया है
माँ की लोरियों ने बमुश्किल सुलाया है
गालों पर बनी हैं आंसुओं की पगडंडियां
इतिहास से पूछो ये कब मुस्कुराया है
आँखों में नहीं सजते रंगीन ख्वाब अब
कई वर्षों से आंसुओं ने घर बसाया है
फितुरी ज़माने ने जाने कैसे सुन लिया
मैंने तो हर संभव चींखों को दबाया है
दिल की बातें यहाँ कौन सुनता है ‘मधु’
झूठ ने सच को हर कदम पे हराया है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
माँ की लोरियों ने बमुश्किल सुलाया है
गालों पर बनी हैं आंसुओं की पगडंडियां
इतिहास से पूछो ये कब मुस्कुराया है
आँखों में नहीं सजते रंगीन ख्वाब अब
कई वर्षों से आंसुओं ने घर बसाया है
फितुरी ज़माने ने जाने कैसे सुन लिया
मैंने तो हर संभव चींखों को दबाया है
दिल की बातें यहाँ कौन सुनता है ‘मधु’
झूठ ने सच को हर कदम पे हराया है
-डॉ. मधुसूदन चौबे
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