Wednesday, 10 December 2014

चींखों को दबाया है

कुछ इसने कुछ उसने बखूबी रूलाया है
माँ की लोरियों ने बमुश्किल सुलाया है

गालों पर बनी हैं आंसुओं की पगडंडियां
इतिहास से पूछो ये कब मुस्कुराया है

आँखों में नहीं सजते रंगीन ख्वाब अब
कई वर्षों से आंसुओं ने घर बसाया है

फितुरी ज़माने ने जाने कैसे सुन लिया
मैंने तो हर संभव चींखों को दबाया है

दिल की बातें यहाँ कौन सुनता है ‘मधु’
झूठ ने सच को हर कदम पे हराया है


-डॉ. मधुसूदन चौबे 

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