Saturday, 10 May 2014

परवाज़ आसमान के आंगन में डाल दे

परवाज़ आसमान के आंगन में डाल दे
या पर कतर के मुझको नशेमन में डाल दे

है इश्क़ वो पहाड़ का सीना करे जो चाक
है हुश्न वो दरार जो दर्पन में डाल दे

ऐ दोस्त तू न पूछ अभी मैं नशे में हूँ
वो इक सवाल जो मुझे उल्झन में डील दे

दौलत तू अपनी चाहे तवाइफ़ की नज्र कर
या फिर किसी फकीर के दामन में डाल दे

अब्रे करम तो आँख दिखा कर चले गए
तू ही कोई शरर मिरे खिरमन में डाल दे

सूखा हुआ गुलाब हूँ 'शायर' तू अब मुझे
लाया जहाँ से था उसी गुलशन में डाल दे


--  देहलवी

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