Saturday, 3 May 2014

कभी इसका तो कभी उसका कर्जदार रहा..

कभी इसका तो कभी उसका कर्जदार रहा..
ता-जिदंगी मेरे सर पर उधार रहा..

तु कहता है मुझे इश्क नहीं है?
मैं ही जानता हूँ, कितना बीमार रहा..

उन पांव में सजी है पाजेब वहां पर,
यहां बेढ़ियों का पांव में भार रहा..

मैं प्यार तो सच्चे ही दिल से किया था,
ये और बात कि तुझे ना एतबार रहा..

सब लबों की हंसी से खा गये धोखा,
ना जाना कोइ, कितना सोगवार रहा..

डर-डर के सही, आज हंसा तो सही 'जैफ',
दोस्त! तेरा ये एहसान मुझ पे उधार रहा..

- 'जैफ'

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