आंसुओं को सहेजकर ऊर्जा का संचार करता हूँ
बिना डरे राह की हरेक बाधा को पार करता हूँ
हर दिन बढ़ती है आभा शुक्ल पक्ष के चंद्रमा सी
निष्ठुरता से अपनी कमियों पर प्रहार करता हूँ
ज़माने के ताने - उलाहने ‘टॉनिक’ हैं मेरे लिए
इनके रसपान से ताकत का अम्बार करता हूँ
जो दौड़ते हैं वही गिरते हैं यही नियम रहा सदा
फिर से खड़े होकर, मैं तेज रफ्तार करता हूँ
ग्रह अपना काम करते हैं और मैं अपना ‘मधु’
नसीब से चलती अंतहीन जंग से प्यार करता हूँ
-सर मधुसूदन चौबे
बिना डरे राह की हरेक बाधा को पार करता हूँ
हर दिन बढ़ती है आभा शुक्ल पक्ष के चंद्रमा सी
निष्ठुरता से अपनी कमियों पर प्रहार करता हूँ
ज़माने के ताने - उलाहने ‘टॉनिक’ हैं मेरे लिए
इनके रसपान से ताकत का अम्बार करता हूँ
जो दौड़ते हैं वही गिरते हैं यही नियम रहा सदा
फिर से खड़े होकर, मैं तेज रफ्तार करता हूँ
ग्रह अपना काम करते हैं और मैं अपना ‘मधु’
नसीब से चलती अंतहीन जंग से प्यार करता हूँ
-सर मधुसूदन चौबे
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