Sunday, 25 May 2014

चैन-ओ-सुकून गंवा दे, दौलत न ऐसी देना

चैन-ओ-सुकून गंवा दे, दौलत न ऐसी देना 
नाकाबिल-ए-बयान हो हालात न ऐसी देना
दिल तो है नासमझ कि कुछ ख्वाहिशें करेगा
रह जाये जो अधुरी, ऐसी चाहत ना देना
उलफ़त में सर उठा कर जीने की है तमन्ना 
रुसवाई हो जहान में उलफ़त न ऐसी देना,
मशरुफियत में हम भी ग़म अपना भूल जायें 
हर लम्हा काट खाये फुरसत न ऐसी देना
दुनिया में कम नहीं हैं शोहरत से जलने वाले 
हो ग़मज़दा जमाना शोहरत न ऐसी देना.
सच्चाई की डगर पर ता-उम्र चलते जायें 
ईमान डगमगाये कभी नीयत न ऐसी देना

------------अज्ञात---------------

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