छोटे से जीवन में रोना क्या शोक मनाना क्या
राह चलते लगी ठोकरें तो इतना चिल्लाना क्या
हरेक कदम पर जिन्दगी एक नया इम्तहान है
आये कभी कठिन प्रश्न तो इसमें घबराना क्या
दुनिया में कोई चुनौती कभी अपराजेय नहीं रही
बगैर लड़े ही रण छोड़कर कायर कहलाना क्या
जहाँ में आए हैं तो जाएंगे भी जैसे सब चले गये
घूमती हुए धरती को अपनी जागीर बनाना क्या
मिट्टी का तन मिट्टी में मिल जाएगा एक दिन
इस पर चर्बी चढ़ाने को श्रम से जी चुराना क्या
सभी का आख़िरी पड़ाव श्मशान ही रहे हैं सदा
किसी दूकान पर कफन देककर डर जाना क्या
तो चल फिर नाचे गायें खूब मौज मनाएं ‘मधु’
खूबसूरत जिंदगी बिना जिये ही मर जाना क्या
- M Choubey
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