Saturday, 3 May 2014

कोई ख्वाब नहीं


तुम नहीं गम नहीं कोई ख्वाब नहीं ।
दर्द है दर्द का हिसाब नहीं ।

तारों को रात भर मै क्यूँ देखूं ।
तुम नहीं कोई आफ़ताब नहीं ।

सब्र छलका है इस पैमाने से ।
इसमें थोड़ी भी तो शराब नहीं ।

शबेफुर्कत तक पहुंचती है भले ।
राहे इश्क इतनी भी ख़राब नहीं ।

तुम बना लो इमारतें कितनी ।
रेत के घरौंदो का जवाब नहीं ।

हुस्न हो और बफा परस्त भी हो ।
ऐसा कोई यहाँ शबाब नहीं ।

दर्द की इबारते हो ना जिसमें ।
इश्क की कोई भी किताब नहीं ।


योगेन्द्र पाठक  चंदौली

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